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Vedic Mantra Sangrah Pdf
नरोत्तम गायकवाड़ की एक विदुषी कन्या थी। उसका नाम सुरभि था। वह अच्छे ढंग से पढ़ी-लिखी हुई लड़की थी। उसे समाज में लड़कियों के साथ होता पक्षपात सहन नहीं होता था।
नरोत्तम ने अपनी कन्या का विवाह देवनरायण के लड़के के साथ तय कर दिया था। देवनरायण पैसे का लोभी था। उसका लड़का किशोर सरकारी नौकरी करता था।
इसलिए उसने दहेज़ में किशोर का सारा पढ़ाई का पैसा वसूलने की सोच रखा था। नरोत्तम जब अपनी लड़की का रिश्ता देवनरायण के लड़के के साथ तय करने पहुंचे थे तभी देवनरायण ने नरोत्तम से कह दिया था कि पूरे दस लाख रुपये दहेज में चाहिए तब ही यह रिश्ता होगा अन्यथा नहीं।
नरोत्तम ने दस लाख रुपये दहेज देने का आश्वासन दिया था। लेकिन यह बात नरोत्तम गायकवाड़ ने अपनी लड़की सुरभि को नहीं बताई थी।
उन्हें डर था कि दहेज की बात मालूम होने पर सुरभि शादी से इंकार कर देगी। शादी का समय धीरे-धीरे नजदीक आ गया था। वर वधू लग्न मंडप में बैठे हुए थे। पंडित जी मंत्रोच्चार कर रहे थे।
वर वधू के पास नरोत्तम की अर्धांगिनी को बैठना था लेकिन वह भी दहेज के खिलाफ थी। इसलिए वहां से चली गई थी। अब नरोत्तम गायकवाड़ ने यह रश्म निवाही और वर वधू के पीछे आकर बैठ गए।
तभी देवनरायण ने पीछे से आकर कहा, “नरोत्तम जी आपको बात याद है ना।”
नरोत्तम ने कहा, “आप फ़िक्र मत करिए मैं आधा पैसा अभी और आधा पैसा बाद में दे दूंगा।”
देवनरायण ने कहा, “हमे बात के मुताबिक पूरा पैसा इसी समय चाहिए अन्यथा मैं अपने लड़के को विवाह मंडप से बाहर बुला ले जाऊंगा।”
सुरभि को बात समझते देर नहीं लगी कि यह सब दहेज के लिए हो रहा है। उसने मंडप में बैठे किशोर को इस विषय में बोलने के लिए कुछ कहा तो किशोर बोला, “पिता जी के सामने कोई भी उनकी बात नहीं काट सकता है।”
देवनरायण पुनः जिन्न की भांति प्रकट होते हुए नरोत्तम से बोला, “आपको हमारी बात का ध्यान रखना होगा नहीं तो मैं अपने लड़के को अपने साथ लेकर चला जाऊंगा।”
नरोत्तम ने कहा, “आप थोड़ा धैर्य रखिए। मैंने छोटे भाई को व्यवस्था करने के लिए कह दिया है।”
कुछ समय में नरोत्तम का छोटा भाई एक बैग में नौ लाख रुपये लेकर आया और नरोत्तम से बोला, “सिर्फ नौ लाख का ही इंतजाम हो सका है।”
तभी दहेज का दानव प्रकट होते हुए बोला, “हमे पूरे दस लाख चाहिए तभी यह व्याह हो सकता है।”
नरोत्तम ने देवनरायण से कहा, “मैं आपके पैर पकड़ता हूँ। मैं आपको यह रिश्ता होने के बाद एक लाख रुपये दे दूंगा।”
अब तो सुरभि के धैर्य का बांध टूट चुका था। उसने नरोत्तम से कहा, “पिता जी रिश्ते हाथ पकड़कर संपन्न किए जाते है। पैर पकड़कर रिश्ते नहीं होते है। मैं यह शादी नहीं करुँगी।”
सुरभि के इतना कहते ही वहां के सभी लोग ताली बजाने लगे क्योंकि दहेज को दूर करने के लिए किसी एक को पहल तो करना ही था।
वह पहल सुरभि ने किया था। अब तो सुरभि मुखर हो चुकी थी। उसने देवनरायण को सम्बोधित करते हुए कहा, “आपका नाम देवनरायण भले ही हो लेकिन आपका काम तो असुरो जैसा ही है। मैं अब आपके बेटे के साथ शादी नहीं कर सकती हूँ। आप जल्द से जल्द यहां से अपने बेटे के साथ चले जाइए अन्यथा हमे आपको जेल भिजवाने का प्रबंध अवश्य ही करना पड़ेगा।”
सुरभि के इतना कहते ही देवनरायण ने अपने बेटे के साथ वहां से हटने में ही अपनी भलाई समझी और उनका दहेज़ का सपना अधूरा ही रह गया।
वैदिक मंत्र संग्रह Pdf Download

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