नमस्कार मित्रों, इस पोस्ट में हम आपको Surdas ka Sahityik Parichay Pdf के बारे में बताने जा रहे हैं। आप Surdas Biography in Hindi यहां से पढ़ सकते हैं।
Surdas ka Sahitya Parichay in Hindi Pdf
सूरदास जी भक्तिकाल की कृष्णाश्रयी शाखा के प्रमुख कवि और वात्सल्य रस के सम्राट थे। सूरदास जी ने अपने पदों में भगवान कान्हा के बाल लीलाओ की मनमोहक व्याख्या की है।
आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने सूरदास जी के बारे में लिखा है “वात्सल्य और श्रृंगार के क्षेत्र में जितना योगदान सूरदास ने अपनी बंद आँखों से किया है उतना किसी और कवि ने नहीं किया। सूरदास जी श्रृंगार और वात्सल्य के क्षेत्र का कोना-कोना झांक आये है।”
सूरदास जी प्रभावित होकर तुलसीदास जी “श्री कृष्ण गीतावली” की रचना की। वल्लभाचार्य की पुत्र विट्ठलनाथ ने आठ कृष्ण भक्त कवियों का एक संगठन “अष्टछाप” बनाया और सूरदास जी “अष्टछाप” के प्रमुख कवि थे।
सूरदास जी ने प्रेम और विरह द्वारा सगुण मार्ग से परमावतार श्री कृष्ण को साध्य माना था। सूरदास जी ने कृष्ण जी को सखा माना था और उनकी रचनाओं भगवान श्री कृष्ण की बाल-लीलाओ का बड़ा ही मनोहर वर्णन है।
श्रीकृष्ण की बाल लीलाओ का कोई भी पक्ष महाकवि सूरदास जी से नहीं छूटा है। सूरदास जी का एक प्रसंग “भ्रमर गीत” के नाम से प्रसिद्ध है।
जिसमे गोपियों के प्रेमावेश ने ज्ञानी उद्धव को भक्त और प्रेमी बना दिया। इस विरह वर्णन में गोपियों के साथ ही ब्रज की प्रकृति भी विसाद मग्न दिखाई देती है।
सूरदास की साहित्यिक विशेषताएं
सूरदास जी कृष्ण काव्यधारा के प्रमुख कवियों में से एक थे। उनकी रचनाओं में प्रगाढ़ भक्ति-भावना झलकती है। आइये अब इसे विस्तार से समझते है।
भक्ति-भावना – सूरदास जी की भक्ति को सगुण भक्ति कहा जाता है क्योंकि वे सगुण ईश्वर के उपासक थे। सूरदास जी प्रेम-भक्ति को अधिक महत्व देते थे।
उनकी भक्ति भावना में सखा-भक्ति झलकती है। सूरदास जी ने श्री कृष्ण को सखा माना है। सूरदास जी ने कितनी चतुराई से कहा है “मैं तो पतित हूँ और आप पतित-पावन है और अगर आपने मेरा उद्धार नहीं किया तो आपका यश समाप्त हो जायेगा।”
कीजै प्रभु अपने विरद की लाज। महापतित कबहुँ नहि आयो, नैकू तिहारे काज।।
सूरदास जी के काव्य में वत्सल, मधुर, शांत, दास्य, सख्य, मुख्य पांच भावो का प्रतिपादन मिलता है।
बाल-लीला वर्णन – सूरदास जी ने अपने काव्य में श्रीकृष्ण जी की बाल लीलाओ का बड़ा ही मनोहारी वर्णन किया है। आप यह उदाहरण देखे – “शोभित कर नवनीत लिये। घुटरुन चलत रेनु तनु पंडित, मुख दधि लेप किये।”
किस तरह से श्रीकृष्ण जी बटखऊ पन दिखाते है, माखन खाते है और माता यशोदा उन्हें डांटती है, लाड-प्यार करती है। इनका विस्तारित वर्णन सूरदास जी के काव्य में दिखाई देता है।
वात्सल्य वर्णन – सूरदास जी ने अपने काव्य में वात्सल्य को अधिक महत्व दिया है। उनके गुरु बल्लभाचार्य जी ने भी श्रीकृष्ण के बाल रूप की अधारना पर अधिक बल दिया है और यही कारण रहा है कि सूरदास जी के काव्य में वात्सल्य की प्रधानता है।
श्रृंगार वर्णन – सूरदास जी भक्ति के कवि जरूर है, परन्तु उनकी रचनाओं में श्रृंगार की भी अधिकता है और इसी कारण सूरदास जी को श्रृंगार का सम्राट कहा जाता है और उन्होंने श्रृंगार के संयोग और वियोग दोनों ही पक्षों का सुंदर चित्रण किया है। संयोग के उदाहरण देखिए – “बूझत स्याम कौन तू गोरी। कहा रहत काकी तू बेटी? देखी नही कहूं ब्रज खोरी।।”
उनका मानना है कि संयोग से प्रिय की समीपता हमेशा बनी रहती है और प्रेम का विस्तार नहीं हो पाता है, जबकि विरह की अग्नि में तप कर प्रेम शुद्धता प्राप्त कर सकता है।
जब श्रीकृष्ण मथुरा चले जाते है, तब राधा, गोपिया, यशोदा, गोप, पशु-पक्षी ब्रज की प्रकृति उनके विरह में व्याकुल हो उठते है। भ्रमर गीत में इसका बड़ा ही मार्मिक वर्णन किया गया है।
उदाहरण – बिनु गोपाल बैरिन भई कुंजै।
प्रकृति वर्णन – अंधे होने के बाद भी सूरदास जी ने जिस तरह से अपने काव्य में ब्रज की प्रकृति का वर्णन किया है वह अद्भुत और अद्वितीय है।
कला पक्ष
1- भाषा – सूरदास जी ने ब्रज को लोक प्रचलित भाषा को अपने काव्य का आधार बनाया है, लेकिन कही-कही अवधी, संस्कृत फारसी का भी समावेश है लेकिन मूलतः सूरदास जी की भाषा शैली ब्रज है।
अलंकार – सूरदास जी ने अलंकार का प्रयोग किया है लेकिन उनमे कृत्रिमता कही नहीं है। उनके काव्य में रूपक, दृष्टांत, व्यक्तिरेक, उपमा, प्रतीप अलंकारों का प्रयोग प्रचुर मात्रा में है।
छंद – सूरदास जी ने अपने काव्य में चौपाई, रोला, दोहा, छप्पय, धनाक्षरी आदि परंपरागत छंदो का प्रयोग किया है।
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