नमस्कार मित्रों, इस पोस्ट में हम आपको Laghu Rudri Path Pdf देने जा रहे हैं, आप नीचे की लिंक से रुद्री पाठ सरल भाषा में Pdf Download कर सकते हैं और आप यहां ललिता सहस्रनाम Pdf Download कर सकते हैं।
Rudri Path Pdf
रुद्री पाठ के फायदे Rudri Path Pdf
आज हम यहां पर Rudri Path के बारे में बताने जा रहे है। Rudri Path करने से क्या लाभ होता है, रुद्री पाठ क्या है?, आप रुद्री पाठ कहां डाऊनलोड कर सकते है और Rudri Path क्या है, इसके बारे में आप जान पाएंगे।
Rudri Path Pujan में भगवान शिव के साथ ही पांच और देवताओ की पूजा होती है। इनमे हम सूर्यदेव, भगवान श्री गणेश, दुर्गा मां, भगवान विष्णु और रुद्र देव की पूजा की जाती है। सावन माह में भगवान शिव के रुद्राभिषेक का अपना महत्व है, इस रुद्राभिषेक से मनोकामनाएं पूर्ण होती है और बहुत पुण्य प्राप्त होता है।
अब हम आपको Rudri Path Pdf के फायदे के बारे में बताने जा रहे है आप इसे पढ़कर फायदे (लाभ) के बारे में जान जायेंगे।
1- वर्षा के लिए जल से रुद्राभिषेक किया जाता है।
2- कुशोदक से रुद्रभिषेक करने से असाध्य रोग खत्म हो जाते है।
3- भवन, वाहन के लिए दही से रुद्राभिषेक करे।
4- गन्ने के रस से रुद्राभिषेक करने पर लक्ष्मी की प्राप्ति होती है।
5- शहद और घी से रुद्राभिषेक करने पर धन की वृद्धि होती है।
6- तीर्थ के जल से रुद्राभिषेक करने पर मोक्ष मिलता है।
7- सरसो तेल से रुद्राभिषेक करने पर दुश्मन शांत होते है।
8- गोदुग्ध और शुद्ध घी से अभिषेक करने पर आरोग्यता प्राप्त होती है।
Rudri Path Pdf Download
ॐ अथात्मानग्ं शिवात्मानग् श्री रुद्ररूपं ध्यायेत् ॥
शुद्धस्फटिक संकाशं त्रिनेत्रं पंच वक्त्रकम् ।
गंगाधरं दशभुजं सर्वाभरण भूषितम् ॥
नीलग्रीवं शशांकांकं नाग यज्ञोप वीतिनम् ।
व्याघ्र चर्मोत्तरीयं च वरेण्यमभय प्रदम् ॥
कमंडल्-वक्ष सूत्राणां धारिणं शूलपाणिनम् ।
ज्वलंतं पिंगलजटा शिखा मुद्द्योत धारिणम् ॥
वृष स्कंध समारूढम् उमा देहार्थ धारिणम् ।
अमृतेनाप्लुतं शांतं दिव्यभोग समन्वितम् ॥
दिग्देवता समायुक्तं सुरासुर नमस्कृतम् ।
नित्यं च शाश्वतं शुद्धं ध्रुव-मक्षर-मव्ययम् ।
सर्व व्यापिन-मीशानं रुद्रं वै विश्वरूपिणम् ।
एवं ध्यात्वा द्विजः सम्यक् ततो यजनमारभेत् ॥
अथातो रुद्र स्नानार्चनाभिषेक विधिं व्या॓क्ष्यास्यामः ।
आदित एव तीर्थे स्नात्वा उदेत्य शुचिः प्रयतो ब्रह्मचारी शुक्लवासा देवाभिमुखः स्थित्वा आत्मनि देवताः स्थापयेत् ॥
प्रजनने ब्रह्मा तिष्ठतु । पादयोर्-विष्णुस्तिष्ठतु । हस्तयोर्-हरस्तिष्ठतु । बाह्वोरिंद्रस्तिष्टतु ।
जठरे अग्निस्तिष्ठतु । हृद॑ये शिवस्तिष्ठतु ।
कंठे वसवस्तिष्ठंतु । वक्त्रे सरस्वती तिष्ठतु ।नासिकयोर्-वायुस्तिष्ठतु ।
नयनयोश्-चंद्रादित्यौ तिष्टेताम् । कर्णयोरश्विनौ तिष्टेताम् ।
ललाटे रुद्रास्तिष्ठंतु ।
मूर्थ्न्यादित्यास्तिष्ठंतु ।
शिरसि महादेवस्तिष्ठतु ।
शिखायां वामदेवास्तिष्ठतु ।
पृष्ठे पिनाकी तिष्ठतु ।
पुरतः शूली तिष्ठतु ।
पार्श्ययोः शिवाशंकरौ तिष्ठेताम् ।
सर्वतो वायुस्तिष्ठतु ।
ततो बहिः सर्वतो ग्निर्-ज्वालामाला-परिवृतस्तिष्ठतु ।
सर्वेष्वंगेषु सर्वा देवता यथास्थानं तिष्ठंतु ।
माग्ं रक्षंतु ।
अ॒ग्निर्मे॑ वा॒चि श्रि॒तः । वाग्धृद॑ये । हृद॑यं॒ मयि॑ । अ॒हम॒मृते॓ । अ॒मृतं॒ ब्रह्म॑णि ।
वा॒युर्मे॓ प्रा॒णे श्रि॒तः । प्रा॒णो हृद॑ये । हृद॑यं॒ मयि॑ । अ॒हम॒मृते॓ । अ॒मृतं॒ ब्रह्म॑णि ।
सूर्यो॑ मे॒ चक्षुषि श्रि॒तः । चक्षु॒र्-हृद॑ये । हृद॑यं॒ मयि॑ । अ॒हम॒मृते॓ । अ॒मृतं॒ ब्रह्म॑णि ।
च॒द्रमा॑ मे॒ मन॑सि श्रि॒तः । मनो॒ हृद॑ये । हृद॑यं॒ मयि॑ । अ॒हम॒मृते॓ । अ॒मृतं॒ ब्रह्म॑णि ।
दिशो॑ मे॒ श्रोत्रे॓ श्रि॒ताः । श्रोत्र॒ग्॒ं॒ हृद॑ये । हृद॑यं॒ मयि॑ । अ॒हम॒मृते॓ । अ॒मृतं॒ ब्रह्म॑णि ।
आपोमे॒ रेतसि श्रि॒ताः । रेतो हृद॑ये । हृद॑यं॒ मयि॑ । अ॒हम॒मृते॓ । अ॒मृतं॒ ब्रह्म॑णि ।
पृ॒थि॒वी मे॒ शरी॑रे श्रि॒ताः । शरी॑र॒ग्॒ं॒ हृद॑ये । हृद॑यं॒ मयि॑ । अ॒हम॒मृते॓ । अ॒मृतं॒ ब्रह्म॑णि ।
ओ॒ष॒धि॒ व॒न॒स्पतयो॑ मे॒ लोम॑सु श्रि॒ताः । लोमा॑नि॒ हृद॑ये । हृद॑यं॒ मयि॑ । अ॒हम॒मृते॓ । अ॒मृतं॒ ब्रह्म॑णि ।
इंद्रो॑ मे॒ बले॓ श्रि॒तः । बल॒ग्॒ं॒ हृद॑ये । हृद॑यं॒ मयि॑ । अ॒हम॒मृते॓ । अ॒मृतं॒ ब्रह्म॑णि ।
प॒र्जन्यो॑ मे॒ मू॒र्द्नि श्रि॒तः । मू॒र्धा हृद॑ये । हृद॑यं॒ मयि॑ । अ॒हम॒मृते॓ । अ॒मृतं॒ ब्रह्म॑णि ।
ईशा॑नो मे॒ म॒न्यौ श्रि॒तः । म॒न्युर्-हृद॑ये । हृद॑यं॒ मयि॑ । अ॒हम॒मृते॓ । अ॒मृतं॒ ब्रह्म॑णि ।
आ॒त्मा म॑ आ॒त्मनि॑ श्रि॒तः । आ॒त्मा हृद॑ये । हृद॑यं॒ मयि॑ । अ॒हम॒मृते॓ । अ॒मृतं॒ ब्रह्म॑णि ।
पुन॑र्म आ॒त्मा पुन॒रायु॒ रागा॓त् । पुनः॑ प्रा॒णः पुन॒राकू॑त॒मागा॓त् । वै॒श्वा॒न॒रो र॒श्मिभि॑र्-वावृधा॒नः । अ॒ंतस्ति॑ष्ठ॒त्वमृत॑स्य गो॒पाः ॥
ॐ अस्य श्री रुद्राध्याय प्रश्न महामंत्रस्य, अघोर ऋषिः, अनुष्टुप् चंदः,
संकर्षण मूर्ति स्वरूपो यो सावादित्यः परमपुरुषः स एष रुद्रो देवता ।
नमः शिवायेति बीजम् ।
शिवतरायेति शक्तिः । महादेवायेति कीलकम् ।
श्री सांब सदाशिव प्रसाद सिद्ध्यर्थे जपे विनियोगः ॥
ॐ अग्निहोत्रात्मने अंगुष्ठाभ्यां नमः ।
दर्शपूर्ण मासात्मने तर्जनीभ्यां नमः ।
चातुर्-मास्यात्मने मध्यमाभ्यां नमः ।
निरूढ पशुबंधात्मने अनामिकाभ्यां नमः ।
ज्योतिष्टोमात्मने कनिष्ठिकाभ्यां नमः ।
सर्वक्रत्वात्मने करतल करपृष्ठाभ्यां नमः ॥
अग्निहोत्रात्मने हृदयाय नमः ।
दर्शपूर्ण मासात्मने शिरसे स्वाहा ।
चातुर्-मास्यात्मने शिखायै वषट् ।
निरूढ पशुबंधात्मने कवचाय हुम् ।
ज्योतिष्टोमात्मने नेत्रत्रयाय वौषट् ।
सर्वक्रत्वात्मने अस्त्रायफट् ।
भूर्भुवस्सुवरोमिति दिग्बंधः ॥
॥ ध्यानं ॥
आपाताल-नभःस्थलांत-भुवन-ब्रह्मांड-माविस्फुरत्-ज्योतिः स्फाटिक-लिंग-मौलि-विलसत्-पूर्णेंदु-वांतामृतैः ।
अस्तोकाप्लुत-मेक-मीश-मनिशं रुद्रानु-वाकांजपन् ध्याये-दीप्सित-सिद्धये ध्रुवपदं विप्रोஉभिषिंचे-च्चिवम् ॥
ब्रह्मांड व्याप्तदेहा भसित हिमरुचा भासमाना भुजंगैः कंठे कालाः कपर्दाः कलित-शशिकला-श्चंड कोदंड हस्ताः ।
त्र्यक्षा रुद्राक्षमालाः प्रकटितविभवाः शांभवा मूर्तिभेदाः रुद्राः श्रीरुद्रसूक्त-प्रकटितविभवा नः प्रयच्चंतु सौख्यम् ॥
ॐ ग॒णाना॓म् त्वा ग॒णप॑तिग्ं हवामहे क॒विं क॑वी॒नामु॑प॒मश्र॑वस्तमम् ।
ज्ये॒ष्ठ॒राजं॒ ब्रह्म॑णां ब्रह्मणस्पद॒ आ नः॑ शृ॒ण्वन्नू॒तिभि॑स्सीद॒ साद॑नम् ॥
ॐ महागणपतये॒ नमः ॥
पुस्तक का नाम | Rudri Path Pdf |
पुस्तक के लेखक | गीता प्रेस |
पुस्तक की साइज | 12.72 Mb |
कुल पृष्ठ | 229 |
फॉर्मेट | |
श्रेणी | धार्मिक |
भाषा | संस्कृत |



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