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Rashtra Bhasha Hindi PDF
पुस्तक का नाम | Rashtra Bhasha Hindi PDF |
पुस्तक के लेखक | निगमानंद परमहंस |
साइज | 14..1 Mb |
भाषा | हिंदी |
पृष्ठ | 225 |
श्रेणी | साहित्य |
फॉर्मेट |
डा, निशा भारती ने बंगलोर में अपने पिता प्रताप भारती को फोन किया -दूसरी तरफ से प्रताप भारती बोले -हाँ बेटा निशा बोलो क्या बात है ?दूसरी तरफ से निशा भारती बोली -पिताजी -एक गरीव घर की कन्या के विवाह के लिए कुछ रूपये चाहिए थे ,क्या आप मदद कर सकेंगे ?प्रताप भारती दूसरी तरफ से बोले -तुम जानती हो निशा ,हमारे जीवन का यही एक उद्देश्य रह गया है कि गरीव लड़के और लड़कीयो की यथा सम्भव सहायता करना और आज तक तुमने हमसे कुछ नहीं माँगा तो इसमें इन्कार करने के लिए सवाल ही कहाँ है।
प्रताप भारती ने पूछा ,बताओ कितने रूपये की आवश्यकता है ?दूसरी तरफ से निशा भारती बोली -पिताजी ,पांच लाख रूपये लगेंगे ,प्रताप भारती बोले ,ठीक है मैं तुम्हारे खाते में पांच लाख रूपये (सरोज सेवा केंद्र )के द्वारा भेज रहा हूँ। लेकिन एक बात और है बेटा ,दूसरी तरफ से निशा भारती ने पूछा ,और कौन सी बात है पिता जी ,प्रताप भारती ने कहा -अब हमारी भी उम्र धीरे -धीरे हमें क्षीण कर रही है और हमारा व्यवसाय तो बहुत बिस्तृत रुप ले चुका है।
मैं चाहता हूँ कि तुम और विपिन दोनों इस व्यवसाय को अच्छी तरह से सम्भालो और मैं तो अब उसकी याद में पूरी तरह से डूब जाना चाहता हूँ जिसने हमें यहाँ भेजा है। क्या तुम और विपिन इस कार्य के लिए तैयार हो ?अगर तुम्हें या विपिन को इस व्यवसाय और संस्था को सँभालने में परेशानी होती है तो कोई एक योग्य व्यक्ति की तलाश करके हमें सूचित करो ,इतना कहते हुए प्रताप ने फोन रख दिया। तीसरे दिन दीपक रत को ८ बजे -सरोज क्लिनिक के सामने आ कर रुक गया था।
क्लिनिक में आज मरीजों की संख्या कम थी ,दीपक जाकर एक कोने में बैठ गया ,निशा दीपक को देख कर बोली ,आओ दीपक ,बैठो तुम्हारा काम हो गया है। तुम कल ही पांच लाख रुपया लेकर जाओ और बालकिशन को देदो और कहना कि अच्छे ढंग से अपनी लड़की के विवाह की तैयारी करे। सरिता और रोशन दोनों बड़े हो गए थे और सारी बातें समझते थे ,तभी रोशन बोला ,माँ ,किसके शादी के लिए दीपक अंकल को पांच लाख रूपये दे रही हैं।
निशाभारती रोशन से बोली -बेटा ,तुम तो जानते हो कि तुम्हारे नाना प्रताप भारती का बेंगलोर में कपड़े का बहुत बड़ा व्यवसाय है वहां करीव २५० सौ आदमी काम करते हैं और तुम्हारे नाना (सरोज -सेवा केंद्र ) नाम से एक संस्था चलाते हैं। हमारे अपने गांव गंगा पुर में इस संस्था का सारा कार्य भार रघुराज अंकल देखते हैं। इस संस्था से गरीव असहाय छात्र -छात्राओं को तथा गरीब लड़कियो की शादी में योगदान दिया जाता है। ताकि रूपये के अभाव में किसी छात्र -छात्रा की पढ़ाई और असहाय कन्याओ की शादी बाधित न होने पाए।
डा. भारती की बात सुन कर सरिता और रोशन बहुत खुश हुए ,डा. निशा भारती बोली ,यह पांच लाख रूपये दीपक को इसी कार्य के लिए दिए जा रहें हैं। सरिता और रोशन एक साथ ही दीपक को देखने लगे ,तभी निशा भारती ने फिर कहा ,यह दीपक भैया बहुत ही बिश्वास पात्र हैं ,इन्होने (सरोज -सेवा केंद्र )से प्रेरणा ले कर ही साथ अपने कई वे सहारा लोंगो को सहारा दिए हुए हैं। तभी दीपक बोला -अच्छा दीदी ,समय हो गया है मैं कल फिर आप के पास आऊंगा। दीपक एक किलो पेठा निशा भारती को देकर चला गया।
डा. निशा भारती दोनों बच्चों के साथ घर आ गई थी ,लेकिन उनके मन में पिता की कही हुई बात गूंज रही थी और वह इस विषय में अपने पति सेवा निवृत फौजी ऑफिसर विपिन भारती से बात करना चाहती थी। सभी लोग भोजन करने के लिए बैठे थे तब निशा विपिन से बोली -बेंगलोर से पिता जी का फोन आया था और वह कह रहे थर कि उम्र के हिसाब से व्यापार सँभालने में समर्थ नहीं हो रहें हैं। ,और हम लोगों से सहयोग करने के लिए कहा है। विपिन बोले -क्या रूपये की आवश्यकता है ?
निशा विपिन से बोली -उन्हें रूपये की आवश्यकता नहीं है ,वह चाहतें हैं कि ,हम लोग उनका व्यापार संभाले ,इस विषय में में आपकी राय जानना चाहती हूँ। विपिन बोले -मैं एक फौजी ऑफिसर और अनुशासन प्रिय व्यक्ति हूँ ,यह अकेले हमारे वश की बात नहीं है ,अगर आप तैयार होती है तो मैं सहयोगी बन जाऊंगा। इस उत्तर के बाद निशा कुछ और सोचने लगी ,उसका ध्यान नरेश और विवेक के ऊपर चला गया।
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