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पुस्तक के बारे में
अनेक प्रकारक ज्वर वहुधा मलावरोध होनेपर ही होते है और वे कब्ज दर होनेसे दर हो जाते है । अतः जमानगोटेका मिश्रण किया है। जमालगोटा मलावरोधनाशक हे। परन्तु इसमें वमन करानेका ओर आँतोम दाह उत्पन्न करनेका दढोप हे । इस हतुसे भॉगरेके रसकी भावना दी है ओर ब्रिफला मिलाया है।
भॉगरसे दाह ओर उद्याकका शमन होता हे तथा वातवाहिनियोका ज्ञोम भी दर होता है । एवं त्रिफन्ना से जमालगोटेकी तजी कम होती है ओर दोपोका पचन होता है । इनके अतिरिक्त वच्छुनाग उप्णता कम करता है। परन्तु साथ- साथ दृदयकी गतिको कुछ शिथश्विल बनाता है ।
इस दोपको दवानेकलिये शाम्राचायनि इस ओपधिम कज्जली ओर त्रिकटुकी योजना की है। पारद-गन्धककी कजजली हृत्य है, ओर त्रिकटु भी हृत्म, उष्ण, , किचित् पसीना लानेबाला ओर दीपन-पाचन है । इस तरह बने हुए प्रयोगर्म बच्छुनाग मुख्य रोगनाशक ओपधि हूं ।
जमालगोटा मल दोपको दूर करनेवाली दूसरे नम्बरम कही हुई उपद्रवनाशक ओपधि है । पारद ओर गन्धक रक्तशोंधक ओर गुण- वद्धक होनेसे दसरे ओर तीसरे प्रकारकी सहायक ओपधियों है. । त्रिकदु हृदय, दोपशामक ओर अग्रिप्रदीषक होनेसे उपद्रवनाशक और दोप- शामक ओपधि है |
ज्वस्मे वहुधा अग्रमिमांथ हो जाता है । उसे दूर करनका काम त्रिकट्ट करता है; ओर बल्य होनेसे बच्छुनागक दोपका भी शमन करता है । अतः यह दूसरे ओर चांथ पग्रकारम लिखे हुए कार्योको करनेवाली ओपधि है। भॉगरेका रस ओर त्रिफला, दोप- शासक चतुर्थ विभागकी ही ओपधियों हैं ।
इस उदाहरणके अलुसार चाह जितने नये प्रयोग बना सकते । शा्रम ६४-६४ ओपधियोके काथ आदिका जो विधान किया हैं; उन सबर्म यही नियम वर्तमान है | यद्यपि कतिपय समय रोगनाशक अनेक मुख्य ओर गोणु ओपधियो एवं उपदच-शासक अनेक ओपधियोंको हूं।
मिलाया जाता है, चतुर्थ विभाग की ओपधि मिलानेकी आव- रैयकता नहीं रहती, तथापि मूल नियसका परिवतेन चहीं ह!ता | शाखमें रोग, उपद्रव, ऋतु, देश, ओपध बल, प्रकृति आदिका पूर्ण विचार करके ही प्रयोग लिखे है, एवं अर्वाचीन विद्वान् भी इसी तरह प्रयोग तैयार करते है।
परन्तु साधारण वोधवाले चिकित्सकोंक लिये वूतन प्रयोगफी योजना कर्नेमे कठिनता रहती है। यह प्रतिबन्ध कुछ अशर्म दर होवे, इसलिये यहाँ सुख्य नियमको संक्षेपर्म दर्शाया है। जिन सिद्ध ओपधियोके प्रयोगोको श्राचीन आचार्यों और विह्ानोने शाल्म-विधि अनुसार तैयार किया है थे सब निर्भयतापूवक उपयोगमे आ सकते है ।
तथापि कोई-कोई ससय देश, काल और रोगीकी परिस्थिति अनुसार तुरन्त लाभ होनेके लिये मात्रा ओर मिश्रण थोडा अन्तर किया जाता है | कदाच अन्तर न किया जाय तो भी तुकसानका भय नहीं हे। किन्तु शाल्विधिका त्यागकर मनगढंत रीतिसे अनेफ ओपवियोका मिश्रण करके उपयोग किया जाय, तो विशेष जवाबढारी रहती है। क्वचित् ऐसी मनोकल्पित ओपधिसे भी किसी को लाभ हो जाय, तो भी वह अनेकों को हानि पहुँचावेगी ।
Ras Tantra Sar PDF In Hindi Download

पुस्तक का नाम | Ras Tantra Sar PDF In Hindi |
पुस्तक के लेखक | कृष्ण गोपाल |
भाषा | हिंदी |
साइज | 51.2 Mb |
पृष्ठ | 922 |
श्रेणी | आयुर्वेद |
फॉर्मेट |
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