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Rang Bhumi Novel PDF Download

रंगभूमि उपन्यास के बारे में और उसके कुछ अंश
शहर अमीरों के रहने और क्रय-विक्रय का स्थान है। उसके बाहर की भूमि उनके मनोरञ्ञन और विनोद की जगह है। उसके मध्य भाग में उनके लड़कों की पाठशालाएँ और उनके मुकदमेबाजी के अखाड़े होते हैं, जहाँ न्याय के बहाने गरीबों का गला घोंटा जाता है।
शहर के आस-पास गरीबों की बस्तियाँ होती हैं। बनारस में पॉड़ेपुर ऐसी ही बस्ती है। वहाँ न शहरी दीपकों की ज्योति पहुँचती है, न शहरी छिड़काव के छींटे, न शहरी जलू-खोतों का प्रवाह |
सड़क के किनारे छोटे-छोटे बनियाँ और हलवाइयों की दूकानें हैं, ओर उनके पीछे कई इक्केवाले, गाड़ीवान, ग्वाले और मजदूर रहते हैं | दो- चार घर बिगड़े सफेदपोशों के भी हैं, जिन्हें उनकी हीनावसंथा ने शहर से निर्वासित कर दिया है।
इन्हीं में एक गरीब और अन्धा चमार रहता है, जिसे छोंग सूरदास कहते हैं । भारतवर्ष में अंधे आदमियों के लिए न नाम की जरूरत होती है, न काम की | सूरदास उनका बना-बनाया नाम है, ओर भीख माँगना बना-बनाया काम | उनके गुण और स्वभाव भी जगत्-प्रसिद्ध हैं–गाने-बजाने में विशेष रुचि, हृदम में विशेष अनुराग, अध्यात्म और भक्ति में विशेष प्रेम उनके स्वाभाविक लक्षण हैं। बाह्य दृष्डि बंद और अंतहष्टि खुली हुई |
सूरदास एक बहुत ही क्षीण-काय, दुर्बल और सरल व्यक्ति था| उसे दैव ने कदा- चित्, भीख माँगने ही के लिए. बनाया था। वह नित्यप्रति छाठी टेकता हुआ पक्की सड़क पर आ बैठता, और राहगीरों की जान की खैर मनाता। “दाता, भगवान तुम्हारा कल्यान करें—? यही उसकी टेक थी, और इसी को वह बार-बार दुह्राता था।
कदाचित् वह इसे लोगों की दया-प्रेरणा का मंत्र समझता था | पेदकू चलनेवालों को यह अपनी जगह पर बेठे-वेठे दुआएँ देता था। लेकिन जब कोई इका आ निकलता, तो वह उसके पीछे दौड़ने छगता, और बग्धियों के साथ तो उसके पैरों में पर छूग जाते थे। किंतु हवा- गाड़ियाँ को वह अपनी शुमेच्छाओं से परे समझता था। अनुभव ने उसे शिक्षा दो थी कि हवागाड़ियाँ किसी की बातें नहीं सुनतीं। प्रातःकाल से संध्या तक उसका समय शुभ कामनाओं ही में कटता था। यहाँ तक कि माघ-पूस की बदली और वायु तथा जेठ- बैसाख की लू-लपट में भी उसे नागा न होता था |
कार्तिक का महीना था | वायु में सुखद शीतढटता आ गई थी। संध्या हो चुकी थी सूरदास अपनी जगह पर मूर्तिवत् बेठा हुआ किसी इक्के या बग्घी के आशाप्रद शब्द पर कान लगाये था। सड़क के दोनों ओर पेड़ छगे हुए थे। गाड़ीवानों ने उनके नीचे गाड़ियाँ ढील दीं। उनके पछाईं बैल ठाठ के टुकड़ों पर खढ़ी और भूसा खाने लगे । गाड़ीवानों ने भी उपले जल्य दिये । कोई चादर पर आय गँधता था, कोई गोल-गोल . बाटियाँ बनाकर उपलों पर सेंकता था | किसी को बर्तनों की जरूरत न थी |
पुस्तक का नाम | Rang Bhumi Novel PDF |
पुस्तक के लेखक | प्रेमचंद |
भाषा | हिंदी |
साइज | 53.8 Mb |
पृष्ठ | 573 |
श्रेणी | उपन्यास |
फॉर्मेट |
रंगभूमि उपन्यास Pdf Download

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