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100 + Rahim Ke Dohe Hindi Pdf / रहीम के दोहे पीडीएफ डाउनलोड

नमस्कार मित्रों, इस पोस्ट में हम आपको Rahim Ke Dohe Hindi Pdf देने जा रहे हैं, आप नीचे की लिंक से Rahim Ke Dohe Hindi Pdf Download कर सकते हैं और आप यहां से कबीर के दोहे पीडीएफ डाउनलोड कर सकते हैं।

 

 

 

Rahim Ke Dohe Hindi Pdf / रहीम के दोहे Pdf 

 

 

 

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Rahim Ke Dohe in Hindi / रहीम के दोहे अर्थ सहित हिंदी में 

 

 

 

राम न जाते हिरन संग, से न रावण साथ। जो रहीम भावी कतहूं, होत न अपने हाथ।।

 

 

 

अर्थ-

हिरण का उदाहरण देकर कविवर रहीम दास जी कहते है कि – जैसी भावी होती है अर्थात जो होना है वही होता है। उस पर किसी का भी वश नहीं रहता है। जैसे – कि अगर राम हिरन के पीछे नहीं जाते तो सीता का हरन नहीं होता – लेकिन भावी वश राम को हिरन के पीछे जाना ही था और इस प्रकार रावण सीता को हर ले गया।

 

 

 

 

 

15- एकै साधे सब सधै, सब साधे सब जाय। रहिमन मूलहि सींचवो, फूलै, फलै अघाय।। 

 

 

 

अर्थ-

पेड़ की एक मूल जड़ का उदाहरण देकर रहीम दास जी कहते है कि – कोई कार्य करने से पहले उसकी मूल जड़ को ढूंढने का प्रयास अवश्य ही करना चाहिए, अगर आपने कार्य की मूल जड़ को भली प्रकार से समझ लिया तो आपके सारे कार्य एक साथ ही अच्छी प्रकार से बन जायेंगे।

 

 

 

जैसे वृक्ष की शाखा और पत्ती पर पानी डालने से कोई लाभ अर्थात फल और फूल नहीं प्राप्त होते है। अगर उसकी मूल जड़ को पानी द्वारा सींचा जाय तो फल और फूल स्वतः ही प्राप्त हो जायेंगे अर्थात किसी कार्य के मूल जड़ को ही पकड़ना चाहिए।

 

 

 

 

16- समय पाय फल होत है, समय पाय झरि जात। सदा रहे न एक सी, का रहीम पछितात।। 

 

 

 

अर्थ-

समय के महत्व को समझाते हुए कविवर रहीम दास जी कहते है कि – मनुष्य चाहे लाख उपाय करे लेकिन कोई भी कार्य अपने समय पर बनता है यही ईश्वर का विधान है।

 

 

 

 

जैसे किसी भी पेड़ पर समय आने पर ही फूल लगता है फिर समय आने पर फल लगता है तथा समय आने पर फल पककर झड़ जाता है और समय का सिद्धांत प्रत्येक के ऊपर ही लागू होता है। किसी की अवस्था सदा एक समान नहीं रहती है इसलिए पछतावा करना व्यर्थ है।

 

 

 

17- रहिमन निज मन की व्यथा, मन ही राखो गोय। सुनि इठलैहैं लोग सब, वाटन लैहै कोय।। 

 

 

 

अर्थ-

बहुत सुंदर सामाजिक बात के ऊपर प्रकाश डालते हुए रहीम दास जी अपनी सुंदर वाणी से कहते है – कि मनुष्य को अपनी व्यथा किसी के सामने व्यक्त नहीं करनी चाहिए। उसे अपने मन में ही रखना चाहिए क्योंकि मन की पीड़ा को बाटने की जगह सभी लोग हँसते हुए उपहास ही करेंगे।

 

 

 

 

18- छिमा बड़न को चाहिए, छोटन को उत्पात। कह रहीम हरि का घट्यो, जो भृगु मारी लात।। 

 

 

 

अर्थ-

रहीम दास जी ने बहुत ही सुंदर सामाजिक बात पर प्रकाश डाला है और कह रहे है कि – क्षमा तो बड़प्पन की निशानी है और जो क्षमाशील होता है लोग उसे ही सम्मान देते है और उदंडता करने वाला सभी की नजरो में गिर जाता है।

 

 

 

 

छोटे लोगो के उत्पात से बड़े लोगो को उद्विग्न नहीं होना चाहिए। जैसे भृगु मुनि ने जब भगवान हरि को लात मारी तो उनका कुछ नहीं बिगड़ा लेकिन भगवान हरि का सहनशील व्यवहार देखकर मुनि को अफ़सोस जरूर हो गया।

 

 

 

 

19- जैसी परे सो सहि रहै, कहि रहीम यह देह। धरती पर ही परत है, सीत घाम और मेह।।

 

 

 

 

अर्थ-

धरती का सुंदर उदाहरण देकर कविवर रहीम दास जी कहते है – मनुष्य को भी धरती की भांति सहनशील होना चाहिए और सुख, दुःख, अच्छा, बुरा सहन करना चाहिए। जैसे धरती इतनी सहन करती है कि उसके ऊपर शीत, धूप और वारिश का आघात होता तो उसे सहती रहती है।

 

 

 

 

20- पावस देखि रहीम मन, कोइल साधे मौन। अब दादुर वक्ता भए, हमको पूछे कौन।। 

 

 

 

अर्थ-

रहीम दास जी अपनी सुंदर में अवसर के ऊपर प्रकाश डालते हुए कहते है कि जीवन में कई बार ऐसे अवसर आते है जहां गुणवान व्यक्ति को नहीं पूछा जाता है और गुणहीन की सराहना होती है। जैसे वर्षा ऋतु के आने पर कोयल चुप हो जाती है और मेढ़क की बेसुरी आवाज गूंजने लगती है।

 

 

 

 

21- रहिमन असुआ नयन ढरि, जिय दुःख प्रकट करेइ। जाहि निकारो गेह ते, कसि न भेद कहि देइ।। 

 

 

 

अर्थ- 

रहीम दास जी बड़े ही मार्मिक बात पर प्रकाश डालते हुए सुंदर और सरल वाणी में कहते है कि आँख से निकले हुए आंसू हृदय के दुःख को प्रकट कर देते है क्योंकि घर निकाले पर मनुष्य अपने घर का भेद दूसरो को बता देता है।

 

 

 

 

22- मन, मोटी अरु दूध रस, इनकी सहज सुभाय। फट जाए तो न मिले, कोटि न करो उपाय।।

 

 

 

अर्थ-

रहीम दास जी ने बहुत सुंदर सामाजिक उदाहरण देते हुए कहते है कि प्रत्येक वस्तु का अपना सहज और सरल स्वभाव होता है और वह एक बार फट जाय तो फिर करोडो उपाय करने से भी सहज अवस्था में नहीं आता।

 

 

 

 

जैसे किसी का मन किसी के प्रति फट जाय तो वह उसके ऊपर कभी विश्वास नहीं करेगा। मोटी, दूध और रस भी फट जाने पर अपने सहज स्वभाव में नहीं आते है।

 

 

 

 

23- जाल परे जल जात बहि, तजि मीनन की मोह। रहिमन मछरी नीर को, तउ न छाड़त छोह।। 

 

 

 

अर्थ-

रहीम दास ने बड़ा ही हृदय ग्राही वर्णन करते हुए पानी और मछली का उदाहरण देकर कहा है कि जिस प्रकार मछली पकड़ने के लिए पानी में जाल डाला जाता है, जो जाल खींचने पर पानी मछली का साथ छोड़ देता है। लेकिन मछली पानी के वियोग को नहीं सह पाती है और अपना प्राण त्याग देती है इसी प्रकार से बुरा समय आने पर घनिष्ट मित्र भी साथ छोड़ देता है।

 

 

 

 

24- विपत्ति भये धन ना रहै, रहै जो लाख करोर। नभ तारे छिप जात है, ज्यों रहीम ये भोर।। 

 

 

 

 

अर्थ-

रहीम दास ने विपत्ति को रेखांकित करते हुए कहा है कि विपत्ति आने पर कोई भी सगा, संबंधी, मित्र साथ नहीं देता यहां तक कि अपना कमाया हुआ करोड़ो रूपया भी अनाप-सनाप खर्च होकर खत्म हो जाता है। जैसे कई करोड़ तारे रात्रि के समय दिखाई देते है लेकिन भोर होते ही उनका कही पता नहीं लगता है।

 

 

 

 

25- ओछो के सतसंग रहिमन, तजहु अंगार ज्यों। ताते जारे अंग, सिरौ पै कारो लागे।। 

 

 

 

 

अर्थ-

रहीम दास जी के कथनानुसार ओछे आदमी का कभी भी संग नहीं करना चाहिए क्योंकि वह हर अवस्था में हानि अवश्य करेगा, जैसे अंगार गर्म रहने से शरीर जलेगा और जब वह अंगार बुझकर कोयला बन जायेगा तो भी वह शरीर को काला ही करेगा।

 

 

 

 

26- रहिमन ओछे नरन सो, बैर भली न प्रीति। काटे चाटे स्वान के, दोउ भांति विपरीत।। 

 

 

अर्थ-

रहीम दास जी मानव समाज को अपने अनमोल वचन से जागरूक करते हुए कहते है कि गिरे हुए लोगो के साथ नहीं रहना चाहिए, गिरे हुए मनुष्य के संगति से बचना चाहिए।

 

 

 

 

यह लोग उस सांप की भांति होते है जिसे दूध पिलाओ तो भी काटेगा और नहीं पिलाओ  काटेगा ही। उसी तरह कुत्ता अगर काट ले तो भी हानि होती है अगर वह कुत्ता चाटता है तो भी हानि होती है।

 

 

 

 

27- तासो कुछ पाइये, कीजै जाकी आस। रीते सरवर पर गए, कैसे बुझे पियास।। 

 

 

 

अर्थ-

रहीम दास जी के हर प्रकार के उदाहरण बड़े ही सुंदर होते है और उनके दोहे से सीख मिलती है। वह कहते है – मनुष्य को जिससे कुछ मिलने की उम्मीद हो उससे ही कुछ मिल सकता है जैसे खाली रहने वाला घड़ा क्या प्यास बुझा सकता है? उसी प्रकार देने में समर्थ व्यक्ति से ही याचना करना चाहिए क्योंकि सूखे तालाब से प्यास नहीं बुझती है।

 

 

 

 

28- माह मास लहि टेसुआ, मीन परे थल और। त्यों रहीम जन जानिये, छूटे आपुनो ठौर।।

 

 

 

अर्थ-

रहीम दास के अनुसार- कोई व्यक्ति अपने स्थान में ही सुख पूर्वक रह सकता है। अपना स्थान छूटने पर उसकी हालत टेसू के फूल और पानी के बाहर पड़ी मछली की भांति हो जाती है। माघ महीना आने पर टेसू का फूल गिरने लगता है और मछली पानी के बाहर सुखी नहीं रहती है स्थान बदलने से सबको ही दुःख उठाना पड़ता है।

 

 

 

 

थोथे बादर क़्वार के, ज्यों रहीम घहरात। धनी पुरुष निर्धन भये, करे पाछिलि बात।। 

 

 

 

अर्थ-

रहीम दास जी सुंदर उदाहरण देकर कह रहे है – कि मनुष्य को वर्तमान समय में ही रहते हुए ही कोई कार्य करना चाहिए उसे पिछली बात को याद नहीं करना चाहिए – जैसे कोई व्यक्ति अमीर से निर्धन हो जाता है तो वह अपनी पिछली बातो को याद करके बड़ी-बड़ी बातें करता है, लेकिन उन बातो का कोई मोल नहीं रहता ठीक उसी प्रकार जैसे क़्वार, अश्विन के महीने में आकाश में घने दिखने वाले बादल गड़गड़ाहट ही करते है और बारिश किये बिना ही खत्म हो जाते है

 

 

 

 

30- संपत्ति भरम गवाई के, हाथ रहत कछु नाहि। ज्यों रहीम ससि रहत है, दिवस आकाशहि माहि।। 

 

 

अर्थ- 

रहीम दास जी चन्द्रमा का बहुत ही सुंदर उदाहरण देकर कहा है कि – जिस प्रकार दिन में चन्द्रमा प्रकाश हीन रहता है। उसका आकाश में होना, नहीं रहने के बराबर होता है।

 

 

 

 

उसी प्रकार से मनुष्य अपने झूठे सुख के लिए अर्थात गलत संगत करने से अपना धन, दौलत, मान, मर्यादा सब कुछ गवां देता है और सबकी नजरो से गिर जाता है।

 

 

 

 

31- साधु सराहै साधुता, जाती जोखिता जान। रहिमन सांचे सूर को, बैरी करै बखान।। 

 

 

अर्थ-

रहीम दास के अनुसार- योगी तो योगी की बड़ाई करेगा। साधु तो सज्जनता की ही बात करेगा और सद्गुणों की प्रशंसा ही करेगा, लेकिन जो शूरवीर और बहादुर है तो उसके विरोधी भी उसकी प्रशंसा किए बिना नहीं रह सकते है, अर्थात विरोधी भी उसकी प्रशंसा करते है।

 

 

 

 

32- वरु रहीम कानन भल्यो, वास करिय फल भोग। बंधु मध्य धनहीन ह्वै, वसिवो उचित न उचित योग।। 

 

 

 

अर्थ-

निर्धन व्यक्ति के ऊपर प्रकाश डालते हुए कविवर रहीम दास जी कहते है कि निर्धन व्यक्ति का हर व्यक्ति उपेक्षित कर देता है अर्थात उसे हर जगह पर बेइज्जती झेलनी पड़ती है।

 

 

 

 

अतः निर्धन होने पर अपने कुटुंब के बीच में नहीं रहना चाहिए क्योंकि वहां उपेक्षा के अलावा कुछ नहीं अर्थात सम्मान नहीं मिलेगा, इससे तो अच्छा है कि वन में रहकर फल, फूल खाकर जीवन बसर किया जाय।

 

 

 

 

33- रहिमन पानी रखिये, बिन पानी सब सून। पानी गए न ऊबरे, मोती मानस चून।। 

 

 

अर्थ-

रहीम दास जी बहुत ही सुंदर तरिके से पानी को अपनी वाणी से कहते है कि – मनुष्य को पानी संभाल करके ही रखना चाहिए, मनुष्य का पानी उसकी नम्रता, बड़ाई है, उसे अवश्य ही कलंकित होने से बचाना चाहिए।

 

 

 

अगर एक बार नम्रता रूपी पानी में कलंक रूपी कीचड़ पड़ गया तो उसकी बड़ाई रूपी स्वच्छता मैली होने से वह अपने समाज में उपहास का पात्र हो जायेगा।

 

 

 

इसलिए उसे नम्रता रूपी पानी को बचाना चाहिए और पानी को दूसरे संदर्भ में मोती से जोड़कर दिखाया गया है, अगर मोती के अंदर चमकीलापन अर्थात मोती आभाहीन है तो आभा चमक रूपी पानी नहीं रहने से उसका कोई मूल्य नहीं है।

 

 

 

पानी का तीसरा प्रयोग चून या कि चूना से या फिर आटा से लगाया जा सकता है क्योंकि आटा तो पानी डालने पर ही गीला (नम्र) होगा और चूने में यदि पानी नहीं रहेगा तो वह भी किसी उपयोग में नहीं लाया जा सकता है, अर्थात चूने को भी पानी में रखकर (नम्रता के साथ) ही उपयोग किया जा सकता है। इसलिए रहीम दास जी, मनुष्य, मोती, चून को पानी रखने की अर्थात विनम्र होने की बात कहते है। विनम्र होना मनुष्य स्वभाव गुण होना चाहिए।

 

 

 

 

34- रहिमन रीति सराहिये, जो घट गुन सम होय। भीति आप पै डारि कै, सबै पियावै तोय।।

 

 

अर्थ-

रहिमन दास जी मानव को घड़ा घड़ा और रस्सी का सुंदर और उद्देश्य पूर्ण उदाहरण देकर कहते है कि – मानव सदा ही परोपकार के कार्य से जुड़ते रहना चाहिए जिससे अपने साथ ही दूसरो का भी हित करने में मदद मिल सके – जैसे एक घड़ा और रस्सी एक दूसरे का सहयोग करते हुए कुए के अंदर जाकर पानी लाते है और उस पानी से कई लोगो की प्यास बुझती है।

 

 

 

 

घड़े को कुए की दिवार से टकराकर अपने अस्तित्व की चिंता नहीं रहती है। उसी प्रकार घड़े की सहयोगी रस्सी जो कि घिस-घिस अपना जीवन समाप्त करते हुए भी घड़े के सहयोग के लिए तत्पर रहती है और परोपकार में लगी रहती है।

 

 

 

 

35- जो बड़े को लघु कहै, नाहि रहीम घट जाहि। गिरधर मुरलीधर कहे, कुछ दुःख मानत नाहि।। 

 

 

 

अर्थ-

रहीम दास के अनुसार- बड़े आदमी को छोटा कहने से उसका बड़प्पन जरा भी कम नहीं होता है। जैसे कि पर्वत को अपनी ऊँगली पर उठाने वाले कृष्ण को लोग मुरलीधर अर्थात छोटी सी बासुरी साथ में रखने वाले कहते है इस बात से उनके सम्मान में कही भी कमी नहीं होती है।

 

 

 

 

36- धनी रहीम जल पंक को, लघु जिय पियत अघाय। उदधि बड़ाई कौन हे, जगत पियासो जाय।। 

 

 

 

अर्थ-

रहीम दास बहुत सुंदर और अकाट्य उदाहरण प्रस्तुत करते है और कहते है उस कीचड़ का पानी बहुत ही सुंदर और धन्य है जिससे अनेको छोटे जीव जन्तुओ को तृप्ति मिलती है और उनकी प्यास बुझती है।

 

 

 

 

लेकिन उस अथाह सागर के पानी का (जिसके पानी का थाह नहीं लगता कि इस सागर में कितना पानी है) क्या फायदा? संसार के किसी भी प्राणी की प्यास उस सागर के पानी से नहीं बुझ सकती है।

 

 

 

 

यहां कीचड़ के पानी रूपी गरीब जो अपने कम पानी से सबकी सहायता कर देता है, पानी का भंडार समुद्र रूपी धनवान व्यक्ति संपत्ति रहने पर भी किसी की सहायता नहीं कर पाता है।

 

 

 

 

37- अब रहीम मुश्किल परी, गाढ़े दोऊ काम। सांचे से तो जग नहीं, झूठे मिले न राम।। 

 

 

 

अर्थ-

रहीम दास जी समय की परख करने वाले कवी और व्यक्ति थे। उन्होंने अपने अमूल्य अनुभव को अपनी वाणी द्वारा बताया है कि – इस भौतिकवाद समय में अगर सच्चाई से अपना कार्य करते रहने पर अति कठिनाई का सामना करना पड़ता है।

 

 

 

 

कवि रहीम को झूठा कार्य पसंद नहीं है झूठा कार्य करने से उनकी प्रभु की भक्ति करने में बाधा है। उनका कहना है कि भौतिकता और भक्ति में से एक ही चुनना पड़ेगा दोनों का एक साथ निर्वाह होना बड़ा कठिन है अर्थात दोनों का एक साथ निर्वाह नहीं होगा।

 

 

 

 

38- मांगे मुकरि न को गयो, केहि न त्यागियो साथ। मांगत आगे सुख न लह्यो, ते रहीम रघुनाथ।।

 

 

 

अर्थ-

रहीम दास जी के कथनानुसार- आदमी बहुत ही स्वार्थी हो गया है उसे अपनी ही भलाई की सोच लगी हुई है। अगर कोई दूसरे से कुछ मांगता है तो वह तुरंत ही मुकर जाता है और ‘ना’ का जवाब सुना देता है।

 

 

 

 

लेकिन आप भगवान से दीन होकर कुछ भी मांगते हो तब वह प्रसन्न होकर आपको मांगी हुई वस्तु प्रदान कर देते है और आपकी निकटता भी भगवान से बनी रहती है अर्थात आप हमेशा ही भगवान के निकट रहते है।

 

 

 

 

39- जेहि अंचल दीपक दुरयो, हन्यो सो ताहि गात। रहिमन असमय के परे, मित्र शत्रु ह्वै जात।। 

 

 

 

अर्थ-

रहीम दास के अनुसार- असमय आने पर अपना मित्र भी शत्रु बन जाता है जैसे कि – हवा के झोके से महिला अपने आंचल से ढकते हुए दीपक को बुझने से बचाकर उसकी रक्षा करती है, वही महिला रात्रि में विश्राम के समय ही उसी दीपक को अपने आँचल की हवा से बुझा देती है। अथवा दीपक की लौ से महिला का आंचल भी जल जाता है ठीक उसी प्रकार असमय में अपने मित्र भी शत्रु की भूमिका में रहते है।

 

 

 

 

40- समय लाभ सम लाभ नहि, समय चूक सम चूक। चतुरन चित रहिमन लगी, समय चूक ही हूक।। 

 

 

 

अर्थ-

रहीम दास जी के अनुसार- व्यक्ति को समय का पारखी होना चाहिए क्योंकि समय के साथ हाथ आया हुआ सुनहरा अवसर निकल जाता है, तो उस अवसर को चुकने हूक यानी कांटा सदैव मन में चुभता

 

 

 

 

रहिमन विपदा हूँ भली, जो थोरे दिन होय। हित अनहित या जगत में, जान परत सब कोय।। 

 

 

 

अर्थ-

रहीम दास जी विपत्ति को परिभाषित करते हुए कहते है कि यदि भगवान किसी को भी विपत्ति दे तो वह थोड़े ही दिनों के लिए दे, उस थोड़े दिन की विपत्ति में अपना हित चाहने वाले और अपना अनहित ‘बुरा’ चाहने वाले दोनों की पहचान अच्छे से हो जाती है कि कौन हमारा हितैषी है और कौन नहीं है।

 

 

 

 

12- बिगड़ी बात बने नहीं, लाख करो किन कोय। रहिमन बिगरै दूध को, मथे न माखन होय।। 

 

 

 

अर्थ-

बिगड़े हुए दूध का उदाहरण देकर रहीम दास जी सरल वाणी में कहते है कि – मनुष्य को हमेशा ही कुशलता पूर्वक सावधानी से ही सबके साथ व्यवहार करना चाहिए क्योंकि गलती होने पर उसे सुधारना बहुत ही मुश्किल होता है जैसे दूध जब फट जाने से खराब स्थिति में पहुंच जाता है तो उसे लाखो प्रयास करके भी मथा जाय तो उसमे से मक्खन निकलना असंभव हो जाता है।

 

 

 

 

13- रहिमन नीर पखान, बुड़ै पर सीझै नहीं। तेसे मूरख ज्ञान, बुझै पै सूझै नहीं।। 

 

 

 

 

अर्थ-

रहीम दास जी उस पत्थर का बड़ा ही अद्भुत उदाहरण देते कहते है जो पत्थर पानी में पड़ा हुआ है, लेकिन उसकी कठोरता में कोई भी कमी नहीं आती है।

 

 

 

 

अर्थात पत्थर को पानी में डाल दो तो भी वह अपनी कठोरता को छोड़कर नरम नहीं होता है। उसी प्रकार मुर्ख व्यक्ति को कितनी विद्वता पूर्ण बातें कहो तो भी उसके समझ में कुछ नहीं आने वाला है। वह अपनी मूर्खता को नहीं छोड़ता है।

 

 

 

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