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Motivational Stories in Hindi Pdf
शहरी क्षेत्र में देहात की अपेक्षा आवश्यकता अधिक रहती है ,आवश्यकता के अनुसार सुविधा भी अधिक रहती है इसका परिणाम यह होता है कि अकेले पुरुष अपने परिवार का दायित्व पूर्ण नहीं कर सकता है।
इसलिए परिवार के परिचालन में औरतों की भागीदारी आवश्यक हो गई है। प्रायः सभी कंपनी वालो ने औरतों के लिए भी आवश्यकता के अनुसार कार्य की व्यवस्था किया है। पराग एक दिन अपने पुत्र कार्तिक से बोले -मैं २० दिन के लिए गांव जा रहा हूँ तब तक के लिए तुम्हें दुकानों के साथ ही अपनी हैण्डलूम कम्पनी को भी संभालना पड़ेगा ,क्या तुम इसके लिए तैयार हो ?
कार्तिक बोला -पिताजी ! जिम्मेदारी तो बढ़ गई है ,कोशिश करूंगा कि इस जिम्मेदारी को अच्छी तरह से पूरी कर सकूं। क्यों कि , भविष्य में ऐसी कोई भी चुनौती आ सकती है ? यह तैयारी हमारे लिए परीक्षा का कार्य करेगी। कार्तिक की बात सुन कर पराग मन में मुस्कुराने लगे क्यों कि उनका लड़का भविष्य में आने वाली चुनौती के लिए तैयार था ?
जो व्यक्ति जैसा कर्म करता है उसे परिणाम भी उसी के अनुरूप प्राप्त होता है और पराग इस मामले में बहुत खुश थे कि उनका कर्म अच्छा था जो उनका पुत्र जिम्मेदारी सँभालने के लिए तैयार था। पराग और केतकी अपने गांव कीरत पुर आ गए थे कीरत पुर में उनका पुश्तैनी मकान था जो पुराने जमाने का बना हुआ था और इस आधुनिक युग में वैसा मकान बनाने के लिए कारीगर और सामग्री का सर्वथा अभाव हो गया था।
क्यों कि समय के साथ ही गांव में भी बदलाव की धीमी वयार बह रही थी। पराग जब छोटे थे तब उनके गांव में हर व्यक्ति के घर पर गाय ,बैल ,और बकरियां हुआ करती थी ,प्रत्येक घर में दुग्ध आसानी से उपलब्ध होता था ,जानवरों के गोबर से उपले बनते थे उन्ही उपले को चौके में ले जा कर घर की औरतें रसोई में भोजन तैयार करती थी ,लोहे की कढ़ाई में बनी हुई सब्जी कितनी स्वादिष्ट होती थी जो स्वाथ्य के लिहाज से भी उत्तम रहती थी।
पराग का परिवार बहुत ही छोटा था ,उनकी जन्म दात्री माता पहले ही ईश्वर के दरवार में चली गई थी ,५ वर्ष का होते ही इन्हें पालने वाली दादी माँ भी अपनी वहू का साथ निभाने ईश्वर के पास चली गई ,उन्होंने भी पराग का साथ छोड़ दिया था। अब तो पराग और उनके पिता मधुकर ही रह गए थे।
कई लोगो ने मधुकर के लिए शादी का प्रस्ताव दिया था ,लेकिन उनका एक ही जवाब होता था ,जब ऊपर वाले को हमारा दर्द नहीं दिखता है तो आप लोग हमारे दर्द को कैसे कम कर सकते हैं ?हमारे पास एक लड़का है ,मैं अपने सुख की खातिर उसकी जिंदगी को दांव पर नहीं लगा सकता हूँ ,मधुकर का जवाब सुनकर लोग चुप हो जाते थे कुछ समय के बाद अन्य लोग भी इस विषय में बात करना छोड़ दिये थे।
मधुकर ने अपनी नौकरी और पराग के बीच में अच्छा ताल मेल -बैठा रखा था। उन्होंने पराग को १० वी तक पढ़ाया और आगे की पढ़ाई के लिए तैयारी करने के लिए कहा ,लेकिन पराग ने खुद ही मना कर दिया।
पराग अपने गांव के एक रिश्ते में चाचा लगने वाले के साथ ही कलकत्ता चले आए ,उसके बाद वह मारवाड़ी की दुकान में नौकरी करने लगे वहीँ से इनकी किस्मत भी बदलने लगी। किरतपुर से १० किलोमीटर दूर पश्चिम में लोचन खेड़ा नामक गांव में पराग की ननिहाल थी ,इनके मामा का नाम भवानी शंकर था उन्हों ने ही अपनी एक रिश्तेदार की लड़की से पराग का पाणिग्रहण करा दिया था।
पराग के पिता भी वृद्ध हो चले थे पराग उन्हें भी अपने साथ रखते थे ,उनकी धर्म पत्नी केतकी उनका बहुत ध्यान रखती थी ,रुपए -पैसो की कोई कमी तो थी नहीं लेकिन केतकी अपने हाथ से ही स्वयं उनकी सेवा करती थी ,पर कुछ साल पहले ही मधुकर ने भी पराग का साथ छोड़ दिया था ,पिता के नहीं रहने से पराग बहुत परेशान हो गए थे ,उन्हें अपने अंदर कुछ खाली -खाली सा लग रहा था।
समय सबसे बड़ा सहायक होता है उसकी सहायता से ही सब कुछ फिर से भर जाता है ,आदमी फिर धीरे -धीरे सामान्य हो जाता है और अपने भविष्य के लिए तत्पर हो उठता है ,यही प्रकृति का अटल नियम भी है। रूपए -पैसे के लिहाज से पराग और केतकी का भविष्य सुरक्षित था लेकिन उन्हें एक और सहारे की जरूरत थी जो उनके पुत्र कार्तिक की सहायता कर सकेऔर इसी सहारे को ढूढ़ने के लिए वह आज लोचन खेड़ा गांव में अपने ननिहाल में केशरी के घर पर थे। केशरी पराग के मामा भवानी शंकर का पुत्र था ,वह पराग से २साल ही छोटा था।
भवानी शंकर की २ संतान थी एक लड़की थी जिसका नाम मनोरमा था और दूसरा लड़का था जिसका नाम केशरी था। पराग की माँ का नाम गिरिजा था जो भवानी शंकर की बड़ी बहन और पराग की माता थी। केशरी अचानक से अपने सामने पराग और उनकी पत्नी को देख कर हतप्रभ था और खुश भी ,खुश इसलिए कि यह लोग बहुत दिन बाद मिले थे ,और हतप्रभ इसलिए कि इसके साथ कोई अनहोनी तो नहीं घट गई।
कुशल मंगल के बाद केशरी खुश थे कि उनके बुआ की निशानी -पराग -सुखी और समपन्न हैं। केशरी ने पराग से पूछा ,पराग भाई !आप बहुत दिन के बाद आए हैं ,आप के गांव में क्या हो रहा है ?पराग बोले !पिता जी जाने के बाद गांव में सब खेती -बाड़ी बटाई पर दे दिया हूँ तथा घर में ताला लगा कर कलकत्ता में अपना व्यापार देखता हूँ ,एक ही लड़का है वह भी ब्रिटेन से पढ़ाई करके आया हुआ है ,उसने अपना खुद का व्यवसाय शुरू कर दिया है तथा अपनी सभी दुकानों को भी संभालता है।
केशरी बोले ,तब आपको उसकी शादी कर देनी चाहिए। पराग बोले -इसी बात का तो रोना है केशरी ,क्योकि ,वह शादी करना नहीं चाहता है ?और मुझे इसी बात की चिंता खाए जा रही है कि उसके बाद इतनी सारी सम्पत्ति का उत्तराधिकारी कौन होगा ?केशरी बोले -शादी नहीं करने के पीछे कोई खास वजह है क्या ?
पराग बोले -मैंने कार्तिक से इस बिषय में बात किया तो बहुत कुदेरने के बाद उसने बताया कि -मैं जहाँ से पढ़करआया हूँ ,उस समाज के लोग शादी के बंधन को खिलौने की तरह तोड़ देते हैं। क्या शादी करना इतना मजाक का खेल है कि जब जिससे चाहते हैं शादी कर लेते हैं फिर उस शादी के बंधन को धागे के समान ही तोड़ देते हैं ?
मैंने तो ऐसी शादियां भी देखी है पिताजी !जो एक महीने भी नहीं चल पाती हैं !अगर आप हमारी शादी करना चाहते हैं तो किसी संस्कारवान घराने को ढूंढिए ,जबकि मेरे विचार से रुपया और सस्कार का मेल कभी नहीं हो सकता है ,रुपया नहीं रहेगा तो कोई बात नहीं है लेकिन सस्कार अवश्य होने चाहिए।
पराग बोले ,मैं कार्तिक की इसी तलाश में यहां तक आया हूँ कि शायद आप से कुछ सहायता मिल सके। पराग की बात सुन कर केशरी सोचने लगे ,तभी पराग बोले -केशरी भाई आप हमारे मामा के लड़के हो गांव में रहते हुए हर तरह के समाज को देखते रहते हो ,अब आप ही हमारी कुछ सहायता करो। केशरी बोले -इस आधुनिक युग में (ऐसा श्रवण कुमार कहाँ से आ गया जो अपने विचारो को जिंदगी की काँवर में बैठा कर जीवन संग्राम की यात्रा में चल पड़ा है कि शायद उसे कहीं मंजिल मिल जाये ,जहाँ वह थक हार कर दो पल विश्राम कर सके। ) ऐसा बहुत ही कम देखने को मिलता है पराग भाई कि – इस आधुनिक युग में कोई व्यक्ति (कोयले के बीच से निकल जायेऔर उसे जरा भी दाग न लग सके। )
शायद यह हमारे दोनों के खानदान का असर है जो कार्तिक जैसा कुल दीपक पैदा हुआ है। केशरी फिर बोले ,पराग भाई !यह ब्रिटेन नहीं भारत है ,भारत कितना भी आधुनिक हो गया हो ,लेकिन अभी यहाँ संस्कारवान मनुष्य और उनके खानदान अवश्य मिल जायेंगे जो अपने संस्कार के आगे संपत्ति को कुछ भी नहीं समझते हैं।
मैं कई जगह देखने के बाद फिर आपको बताऊंगा। पराग अपने ननिहाल से लौट कर अपने गांव कीरत पुर आ गए थे। गांव में पराग का कच्चा मकान पुराने ढंग से बना हुआ था जो आज भी अपनी वनावट से ईट के बने हुए घरों का उपहास करता था। एक दिन शाम को पराग अपने दरवाजे पर बैठे हुए थे तो उनके पड़ोस का बृजेश -जिसे लोग बिरजू कहते थे – वहां आया और कहने लगा ,पराग भैया ! कार्तिक की शादी तो बहुत अच्छे ढंग से हो जाएगी लेकिन ,,,,,,लेकिन क्या विरजू बताओ ? पराग व्यग्र हो कर बोले !
विरजू बोला -आपके पास रुपयों की कमी तो है नहीं ,आप इस घर को अच्छे तरिके से बनवा दीजिये तो कार्तिक की शादी होने में देर नहीं लगेगी ,क्योकि ?इस आधुनिक युग में लोग ऊपरी चमक ही देखते है ,चाहे आदमी भीतर से खोखला क्यों न हो ? लोग इस विकास की अंधी दौड़ में पीतल की चमक को देखकर उसे सोना समझने की भूल कर बैठते है। लेकिन आप तो २४ कैरेट के सोना हैं ,अगर इस घर का जीर्णोद्धार करवा देंगे तो यह सोने पर सुहागा हो जायेगा और कार्तिक की शादी होने में तनिक भी देर नहीं लगेगी।
विरजू ने यथार्थ का वर्णन कर दिया था .पराग बोले -लेकिन विरजू -कार्तिक को ऐसी जीवन संगिनी चाहिए जो संस्कारवान हो ,आधुनिक होते हुए भी अपने घर के संस्कार को सभालने में निपुण हो जो अपने घर की मर्यादा और सीमा कोअखंडित बनाये रखे। लेकिन पराग भैया -मैं एक बात आप से कहूँ ,पराग बोले -निःसंकोच कहो विरजू !विरजू बोला -अगर कोई व्यक्ति अपनी लड़की का जीवन साथी बनाने से पहले कार्तिक को लेकर आप के सामने यही प्रश्न कर दे तब आप क्या करेंगे ?
पराग इस प्रश्न का उत्तर पहले से ही तैयार करके बैठे थे ,उन्होंने कहा -विरजू ! मुझे यहाँ आये हुए १७ दिन हो गए हैं मैं २० वे दिन कलकत्ता जाने वाला था ,लेकिन तुमने मुझे कलकत्ता जाने से रोक दिया ,अब मैं तुम्हें अपनी जगह कलकत्ता में कार्तिक के पास भेजूंगा ,तुम वहां जा कर स्वयं अपनी आँखों से देख लेना।
विरजू बोला -पराग भैया !आप बुरा मत समझिये ,हमारी नजर में ३-४ लोग हैं जो आप की तरह ही संस्कारवादी और सिद्धांतवादी हैं ,वह लोग भी अपने सिद्धांत से कोई समझौता नहीं करते है ,उनलोगो के लिए पैसे से ज्यादा मूल्य उनके सिद्धांत और संस्कार का है।
इसी तरह बात करते हुए रात्रि के ८ बज गए इसी बीच विरजू की ४ साल की लड़की चुनमुन वहा आ गई और बोली ! बापू आज गाय से दूध नहीं निकलना है क्या ?विरजू ने ध्यान दिया तो उसकी गाय रभा रही थी अपने बछड़े को दूध पिलाने के लिए।
१५ मिनट के बाद विरजू आया और पराग तथा केतकी को अपने घर लिवा ले गया भोजन करने के लिए ,पराग जब से आये हुए है कलकत्ता से उसी दिन से से ही विरजू अपने घर पर ही उनके लिए भोजन की व्यवस्था करता आया है और पराग भी जाते समय उसे निरास नहीं करते ,उनके लिए ५या १० हजार देना कोई बड़ी बात नहीं थी।
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