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Manusmriti pdf
वेद के शब्द और अर्थ ये दो शरीर है। उसमे शब्द शरीर की रक्षा शिक्षा व्याकरण निरक्त और छंद से है, अर्थ शरीर की रक्षा ज्योतिष कल्पसूत्र और उपांग से है। इस प्रकार ऋग, यजुः, सामरूप वेद के शब्दार्थ रूप शरीर के अंग तथा उपांग सहायक है।
अंग उपांग कहने से यह अभिप्राय नहीं है कि जैसे लोक में अंगोपांग का समुदाय रूपी अंगी है या अंगोपांग के नाश हो जाने से अंगी नष्ट हो जाता है किन्तु वेद के अंगोपांग वेद के शब्दार्थरूप शरीर के परिचायक प्रदर्शक बोधक माने जाते है। किंवा किसी दृश्य के सौर आदि प्रकाश प्रकाशक है।
और जैसे देवदत्त के अभाव में यज्ञदत्त आदि तथा सौर प्रकाशक के अभाव में आग्नेय प्रकाश आदि कार्य के साधक है वैसे ही कालवश अंगोपांग के नष्ट हो जाने पर दूसरे अंगोपांग वेद के सहायक होते है। इससे स्पष्ट है कि अंगोपांग के अधिकार नित्य है और वे स्वरुप से अनित्य है और वेद तो स्वरुप से भी नित्य है।
इसीलिए वेद का नाम श्रुति है। जो गुरु परंपरा से सुनी जावै और बनाई जावै वह श्रुति है और अंगोपांग का साधारण नाम श्रुति है। जो वेदार्थानुकूल स्मरण की जावै वह स्मृति है। स्मरण के न्यूनाधिक भाव से ही स्मृतियों के प्रामाण्य में न्यूनाधिक भाव माना गया है। इस पुस्तक को पूरा पढ़ने के लिए लिंक पर क्लिक करे।
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