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Mahatma Gandhi ki Atmakatha Pdf
इस सत्यप्रियता ने आपको अनेक बार पाप के गर्त में गिरने से बचाया। कुसंगति में पढ़कर आपने एक बार भाई का कर्जा चुकाने के लिए एक तोला सोना चुरा लिया था। कर्जा तो निपट गया किन्तु अंतरात्मा पश्चाताप की आग में जलने लगी।
सोचा पिताजी के सामने दोष स्वीकार कर ले, किन्तु जबान नहीं खुली। अंत में उन्होंने एक चिट्ठी पिता जी के लिए लिखी जिसमे उन्होंने स्वयं अपना अपराध स्वीकार किया था। गांधी जी ने सारी की सारी बात उसमे लिख दी और प्रतिज्ञा की कि वे भविष्य में कभी भी ऐसा अपराध न करेंगे।
गांधी जी ने इस भूल को स्वीकार किया। पत्र पढ़ते ही पिता की आंखे भर आयी। गांधी जी भी खूब रोये। गांधी जी को डर था कि पिता जी उनका दोष जानकर क्षमा नहीं करेंगे। वे स्वभाव से उदार और सत्यप्रिय थे किन्तु क्रोधी थे।
फिर भी उन्होंने गांधी जी द्वारा स्वयं दोष स्वीकार करने के बाद उन्हें हृदय से क्षमा कर दिया। तभी से गांधी जी ने यह शिक्षा ली कि प्रायश्चित का सबसे अच्छा उपाय शुद्ध हृदय से दोष स्वीकार कर लेना है। पिता जी के आंसुओ में गांधी जी की सभी कमजोरियां उसी तरह बह गयी जिस तरह गंगा के निर्मल प्रवाह में जमीन का कूड़ा करकट बह जाता है। इस पुस्तक को पूरा पढ़ने के लिए लिंक पर क्लिक करे।
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