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Mahakali Kavach In Hindi Pdf /शत्रु नाशक काली कवच pdf
नारद उवाच
कवचं श्रोतुमिच्छामि तां च विद्यां दशाक्षरीम् ।
नाथ त्वत्तो हि सर्वज्ञ भद्रकाल्याश्च सांप्रतम् ।। 1 ।।
नारायण उवाच
श्रुणु नारद वक्ष्यामि महाविद्यां दशाक्षरीम् ।
गोपनीयं च कवचं त्रिषु लोकेषु दुर्लभम् ।। २ ।।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं कालिकायै स्वाहेति च दशाक्षरीम् ।
दुर्वासा हि ददौ राज्ञे पुष्करे सुर्यपर्वणि ।। ३ ।।
दशलक्षजपेनैव मन्त्रसिद्धिः कृता पुरा ।
पञ्चलक्षजपेनैव पठन् कवचमुत्तमम् ।। ४ ।।
बभूव सिद्धकवचोSप्ययोध्यामाजगाम सः ।
कृत्स्रां हि पृथिवीं जिग्ये कवचस्य प्रसादतः ।। ५ ।।
नारद उवाच
श्रुता दशाक्षरी विद्या त्रिषु लोकेषु दुर्लभा ।
अधुना श्रोतुमिच्छामि कवचं ब्रुहि मे प्रभो ।। ६ ।।
नारायण उवाच
श्रुणु वक्ष्यामि विप्रेन्द्र कवचं परामाद्भुतम् ।
नारायणेन यद् दत्तं कृपया शूलिने पुरा ।। ७ ।।
त्रिपुरस्य वधे घोरे शिवस्य विजयाय च ।
तदेव शूलिना दत्तं पुरा दुर्वाससे मुने ।। ८ ।।
दुर्वाससा च यद् दत्तं सुचन्द्राय महात्मने ।
अतिगुह्यतरं तत्त्वं सर्वमन्त्रौघविग्रहम् ।। ९ ।।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं कालिकायै स्वाहा मे पातु मस्तकम् ।
क्लीं कपालं सदा पातु ह्रीं ह्रीं ह्रींमिति लोचने ।। १० ।।
ॐ ह्रीं त्रिलोचने स्वाहा नासिकां मे सदावतु ।
क्लीं कालिके रक्ष रक्ष स्वाहा दन्तं सदावतु ।। ११ ।।
ह्रीं भद्रकालिके स्वाहा पातु मेsधरयुग्मकम् ।
ॐ ह्रीं ह्रीं क्लीं कालिकायै स्वाहा कण्ठं सदावतु ।। १२ ।।
ॐ ह्रीं कालिकायै स्वाहा कर्णयुग्मं सदावतु ।
ॐ क्रीं क्रीं क्लीं काल्यै स्वाहा स्कन्धं पातु सदा मम ।। १३ ।।
ॐ क्रीं भद्रकाल्यै स्वाहा मम वक्षः सदावतु ।
ॐ क्रीं कालिकायै स्वाहा मम नाभिं सदावतु ।। १४ ।।
ॐ ह्रीं कालिकायै स्वाहा मम पृष्टं सदावतु ।
रक्तबीजविनाशिन्यै स्वाहा हस्तौ सदावतु ।। १५ ।।
ॐ ह्रीं क्लीं मुण्डमालिन्यै स्वाहा पादौ सदावतु ।
ॐ ह्रीं चामुण्डायै स्वाहा सर्वाङ्गं मे सदावतु ।। १६ ।।
प्राच्यां पातु महाकाली आग्नेय्यां रक्तदन्तिका ।
दक्षिणे पातु चामुण्डा नैऋत्यां पातु कालिका ।। १७ ।।
श्यामा च वारुणे पातु वायव्यां पातु चण्डिका ।
उत्तरे विकटास्या च ऐशान्यां साट्टहासिनि ।। १८ ।।
ऊर्ध्वं पातु लोलजिह्वा मायाद्या पात्वधः सदा ।
जले स्थले चान्तरिक्षे पातु विश्वप्रसूः सदा ।। १९ ।।
इति ते कथितं वत्स सर्वमन्त्रौघविग्रहम् ।
सर्वेषां कवचानां च सारभूतं परात्परम् ।। २० ।।
सप्तद्वीपेश्वरो राजा सुचन्द्रोSस्य प्रसादतः ।
कवचस्य प्रसादेन मान्धाता पृथिवीपतिः ।। २१ ।।
प्रचेता लोमशश्चैव यतः सिद्धो बभूव ह ।
यतो हि योगिनां श्रेष्टः सौभरिः पिप्पलायनः ।। २२ ।।
यदि स्यात् सिद्धकवचः सर्वसिद्धीश्वरो भवेत् ।
महादानानि सर्वाणि तपांसि च व्रतानि च ।
निश्चितं कवचस्यास्य कलां नार्हन्ति षोडशीम् ।। २३ ।।
इदं कवचमज्ञात्वा भजेत् कालीं जगत्प्रसूम् ।
शतलक्षप्रजप्तोSपि न मन्त्रः सिद्धिदायकः ।। २४ ।।
।। इति श्रीब्रह्मवैवर्ते कालीकवचं संपूर्णम् ।।

माता महाकाली के बारे में Mahakali Kavach In Hindi Pdf
महाकाली को संस्कृत में महाकाल नारीकृत रूप बताया गया है। महाकाल भगवान शिव का ही एक रूप है और शिव की अर्धांगिनी शिवा अर्थात पार्वती ने ही महाकाली का रूप धारण किया है। महाकाली को विनाश और प्रलय की देवी के रूप में पूजा जाता है।
महाकाली काल (समय) का भी भक्षण कर जाती है। वह जीवन-मृत्यु, समय सार्वभौतिक शक्ति पुनर्जन्म और मुक्ति की प्रदाता देवी है। भवानी पार्वती और उनके स्वरुप महाकाली के विभिन्न स्वरुप है।
महाकाली कौन है
महाकाली शक्तिरूपा एक भयानक स्वरुप वाली देवी है। उन्होंने एक दुष्ट राक्षस जिसका नाम रक्तबीज था उसे समाप्त करने के लिए अवतार धारण किया था।
उनकी देह का रंग काला होने के कारण ही उनका नाम काली पड़ा और अपने महाभयानक स्वरुप के कारण ही उन्हें महाकाली कहा जाता है। खोपड़ी का लंबा हार उनका आभूषण है तथा उनके कई हाथ है तथा उनके तीन नेत्र है।
महाकाली की उत्पत्ति
रक्तबीज नामक राक्षस को ब्रह्मा जी के वरदान से ऐसी शक्ति प्राप्त हो गयी थी कि वह अजर-अमर हो गया था तथा ब्रह्मा जी के वरदान के कारण ही उसके शरीर से रक्त की जितने बूंदे धरती पर गिरती थी उतनी संख्या में ही दूसरे रक्तबीज पैदा हो जाते थे।
इस तरह से उसकी बहुत संख्या हो गयी थी। ब्रह्मा जी ने उसे यह वरदान भी दिया था कि उसे एक स्त्री के अलावा कोई नहीं मार सकता है। इसलिए वह तीनो लोक में सुर, नर, नाग, किन्नर सबके ऊपर भारी अत्याचार करने लगा। सभी देवता परेशान होकर शिव जी के पास गए लेकिन वह ध्यानमग्न थे तब देवता ने शिवा अर्थात पार्वती से अपनी रक्षा की याचना की। भवानी पार्वती ने काली रूप धारण करके ही रक्तबीज से युद्ध किया।
महाकाली द्वारा रक्तबीज का अंत
महाकाली से युद्ध में रक्तबीज के शरीर से जो रक्त बूंदे धरती पर गिरती तब दूसरा रक्तबीज उत्पन्न हो जाता था। इसलिए महाकाली ने अपनी जिह्वा का आकार बड़ा कर लिया और रक्त की सभी बूंदे उनकी जिह्वा पर ही गिरने लगी इसप्रकार रक्तबीज कमजोर हो गया तब महाकाली ने उसका वध कर दिया।
महाकाली का शिव जी के ऊपर पैर रखने का कारण था?
रक्तबीज के वध उपरांत उनका क्रोध अपनी पराकाष्ठा पर था। उनके सम्मुख जो भी आता था महाकाली के द्वारा उसका विनाश हो जाता था। सभी लोग उनके सामने जाने से डरने लगे। सभी देवता लोग इस समस्या के समाधान के लिए देवाधिदेव महादेव के पास गए और उनसे महाकाली को शांत करने की प्रार्थना करने लगे। महादेव के द्वारा महाकाली को शांत करने के सभी प्रयास विफल हो गए।
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