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Kumar Vishwas Books Pdf in Hindi | कोई दीवाना कहता है Pdf

नमस्कार मित्रों, इस पोस्ट में हम आपको Kumar Vishwas Book Pdf देने जा रहे हैं। आप नीचे की लिंक से Kumar Vishwas Book Pdf Download कर सकते हैं।

 

 

 

Kumar Vishwas Book Pdf 

 

 

 

 

 

 

 

मदन एक मध्यम वर्गीय मनुष्य था। वह एक कम्पनी में कार्यरत था। उसके परिवार में उसकी पत्नी और एक बेटी थी। मदन का परिवार हसी ख़ुशी चल रहा था।

 

 

 

 

लेकिन कालचक्र की ऐसी काली छाया पड़ी कि मदन का हसता हुआ परिवार तबाह हो गया था। उसकी पत्नी का देहांत हो गया उसके बाद उसकी कंपनी बंद हो गई मदन बेरोजगार हो गया।

 

 

 

 

माँ की मौत को उसकी बेटी बर्दास्त नहीं कर सकी उसे लकवा मार गया था वह अपंग हो गई थी। सारी मुसीबत एक साथ ही मदन के ऊपर टूट पड़ी थी।

 

 

 

 

मुसीबतो से मदन बहुत टूट गया था। लेकिन उस अपंग बेटी के लिए ही साहस करते हुए जिन्दा था। वह अब दिहाड़ी पर मजदूरी करता था। किसी तरह से अपना और बेटी का पेट भरता था।

 

 

 

 

हालात इतने खराब हो गए थे कि जिस दिन उसे दिहाड़ी नहीं मिलती थी तब वह भूखा रह जाता था लेकिन अपनी बेटी के लिए किसी तरह से खाने की व्यवस्था अवश्य ही करता था।

 

 

 

 

एक बार मदन की अपंग बेटी ने जलेबी खाने की इच्छा प्रकट किया था। लेकिन किस्मत का मारा मदन अपनी बेटी की यह इच्छा भी पूरी करने में समर्थ नहीं था।

 

 

 

 

वह अपनी बेटी को झूठा ही दिलासा देता था कि दिवाली का जब बोनस मिलेगा तब उसे जलेबी के साथ ही एक सुंदर सा फ्राक भी लाकर देगा।

 

 

 

 

 

लेकिन उसकी बेटी इतनी समझदार थी कि वह कभी किसी बात के लिए जिद नहीं करती थी। छोटी होते हुए भी अपने पिता को साहस अवश्य देती थी कि उसके भी अच्छे समय आएगे।

 

 

 

 

 

एक दिन मदन दिहाड़ी करके घर जा रहा था। उसके पास 20 रुपये ही थे। एक बड़ी दुकान के सामने एक पुतले को सुंदर फ्राक में देखकर मदन वहां रुक गया।

 

 

 

 

 

उसी क्षण दुकान का मालिक बाहर आकर मदन से बोला, “ऐ इतनी तल्लीनता से क्या देख रहा है। कही चोरी का इरादा तो नहीं है।”

 

 

 

 

मदन दुकान मालिक से बोला, “मैं गरीब जरूर हूँ पर चोर नहीं हूँ। मैं इस फ्राक को अपनी बेटी के लिए देख रहा था क्या कीमत है इसकी ?”

 

 

 

 

 

दुकान का मालिक क्रोधित होकर बोला, “इसकी कीमत तुम्हारे बस की बाहर की बात है।”

 

 

 

 

इतना कहते हुए दुकान मालिक ने मदन को झिड़क दिया ना जाने कहां से चले आते है भाग जा यहां से। मदन अपना मन मसोस कर वहां से चला गया था।

 

 

 

 

दो दिन बाद ही दिवाली थी। समय का चक्र घूमा दुकान के मालिक के लड़के का एक्सीडेंट हो गया था। एक दिन जब मदन दिहाड़ी करने गया था तब उसकी अपंग बेटी ‘महालक्ष्मी’ के मंदिर में जाकर अपने पिता के लिए माता लक्ष्मी से प्रार्थना कर रही थी कि उसके पिता की नौकरी लग जाए जिससे उसकी भी दीपावली अच्छी तरह से बीत जाए।

 

 

 

 

 

मदन अपने घर की तरफ जा रहा था। तब रास्ते में ही वह उस बड़ी दुकान पर मदन कुछ देर के लिए रुका था। दुकान मालिक बाहर निकला लेकिन उसने पहले की तरह मदन की तरफ देखा तक नहीं और अपनी कार लेकर आगे बढ़ गया था।

 

 

 

 

 

दुकान मालिक इतनी जल्दी में था कि उसका रुपयों से भरा बैग कब गिर गया उसे पता ही नहीं लगा। वह बैग मदन के हाथ लग गया। मदन ने उस बैग को खोलकर देखा तो उसकी आंखो को विश्वास ही नहीं हुआ क्योंकि वह बैग रुपयों से ठसा-ठस भरा हुआ था।

 

 

 

 

 

एक बार तो मदन खुश हो गया कि उसकी दीपावली अच्छे से बीत जाएगी। लेकिन तभी उसे ख्याल आया कि इतना रुपया दुकान का मालिक न जाने किस उद्देश्य से लेकर जा रहा था।

 

 

 

 

 

पैसा नहीं रहने पर दुकान मालिक का काम बिगड़ जाएगा। इतना सोचते हुए मदन उस तरफ दौड़ पड़ा जिधर दुकान मालिक कार से गया हुआ था।

 

 

 

 

 

लेकिन मदन निराश हो गया क्योंकि उसे न ही वह कार मिली न ही दुकान मालिक दिखाई पड़ा। यह सोचते हुए मदन जा रहा था कि दूसरे दिन आकर दुकान मालिक को उसका रुपयों से भरा हुआ बैग लौटा देगा।

 

 

 

 

तभी एक तरफ दुकान मालिक की वह कार खड़ी हुई दिखी। मदन उधर ही बढ़ गया, वह एक अस्पताल था। दुकान मालिक और उसकी औरत दोनों रोते हुए बाहर आ रहे थे।

 

 

 

 

मदन दौड़कर उसके पास गया और बोला, “आप अपने रुपयों से भरे बैग के लिए रो रहे है तो यह लीजिए आपका बैग इसमें आपके सारे रुपये सुरक्षित है। हां मैंने इस बैग को चुराया नहीं है। यह आपकी गाडी से गिर गया था।”

 

 

 

 

 

तब दुकान का मालिक कहने लगा, “मैं इन रुपयों के लिए नहीं रो रहा हूँ। हमारे लड़के का एक्सीडेंट हो गया है, उसे रक्त की जरूरत है। हम दोनों में से किसी का भी रक्त उसके रक्त से मेल नहीं खाता है। एक आदमी अपना रक्त देने वाला था। लेकिन वह पहले पैसा मांग रहा था और मैंने उसे पैसा देने के लिए कहा तो यह बैग गायब था। पैसे के अभाव में वह आदमी चला गया। अब हमारा लड़का रक्त के अभाव में नहीं बचेगा।”

 

 

 

 

इतना सुनकर मदन बोला, “आप घबड़ाइए नहीं मैं आपके लड़के को अपना रक्त दूंगा।”

 

 

 

 

 

मदन का रक्त उसके लड़के के रक्त से मेल खा गया और दुकान मालिक के लड़के की जान बच गई। मदन वह रुपयों से भरा बैग दुकान मालिक को सौपना चाहा।

 

 

 

 

 

तब दुकान मालिक ने कहा, “आपने हमारे ऊपर इतना कर्ज लाद दिया है कि इस बैग के रुपयों के साथ ही दस बैग रुपयों से भरा कम पड़ जाएगा, इसे आप रख लो।”

 

 

 

 

 

लेकिन मदन ने यह कहते हुए कि भगवान के पास क्या जवाब दूंगा। रुपयों से भरा बैग दुकान मालिक को वापस कर दिया और अपने घर की तरफ चल दिया।

 

 

 

 

उसका मन उदास था क्योंकि वह अपनी अपंग लड़की के लिए न ही जलेबी और न ही फ्राक खरीद पाया था। लेकिन किसी की सहायता करके उसके मन में संतोष का भाव अवश्य ही था।

 

 

 

 

 

मदन जब घर पहुंचा तब देखा कि उसके घर में भी दीपावली के दीप जल रहे थे और उसकी बेटी ने वही फ्राक पहन रखा है जो मदन ने उस दुकान पर देखा था।

 

 

 

 

मदन सोच ही रहा था। तभी दुकान मालिक अपनी पत्नी के साथ ही आया और कहने लगा, “मैं बहुत ही शर्मिंदा हूँ। आपके एहसान के बदले में यह छोटा सा उपहार है।”

 

 

 

 

मदन बोला, “तो यह सब आपने किया है।”

 

 

 

 

दुकान मालिक कहने लगा, “मैं भगवान के पास जाकर क्या जवाब देता।”

 

 

 

 

मदन बोला, “लेकिन मैं यह सब ऋण कैसे चुकाऊंगा ?”

 

 

 

 

तब दुकान मालिक ने कहा, “यह ऋण नहीं है। जब आप हमारे लड़के को जीवन दे सकते है तब मैं आपको इतनी छोटी ख़ुशी भी नहीं दे सकता हूँ क्या ?”

 

 

 

 

मदन को चुप देखकर दुकान मालिक बोला, “कल से दुकान पर आ जाना। नौकरी करने के लिए नहीं, भागीदारी करने के लिए।”

 

 

जिस प्रकार सबके साथ रहने पर भी मानव अकेला रहता है और अकेलेपन में कुछ पल के लिए शांति ढूंढता है और वह शांति मिलती भी है।

 

 

 

 

लेकिन अपने स्वभाव के कारण मानव फिर से झुण्ड में जा मिलता है जिससे वह बिछड़ गया था। लेकिन उसे मिलता क्या है कोलाहल एक दूसरे को पीछे करने की चाहत।

 

 

 

 

जितने भी बड़े-बड़े मनीषी हुए है उनके जीवन में झांकिए तो आप को शांति जरूर मिलेगी चाहे वह कुछ पल के लिए ही क्यूं न हो। ध्यान देने वाली बात यह है कि शांति के बाद ही रचना का सृजन होता है।

 

 

 

 

पंकज को हमेशा ही कोई न कोई विचार उसे उद्विग्न किए रहता था। उसके सभी दोस्त हमेशा चिढ़ाया करते थे क्योंकि वह उन सभी के जैसा नहीं था। हर क्षण खा पीकर मस्त रहते थे, वह हमेशा विचारों में डूबा रहता था। एक समय कुछ लोग आपस में किसी बात पर बहस कर रहे थे।

 

 

 

 

पंकज भी वहां खड़ा हो गया, उन लोगों की बातें सुनी और आगे बढ़ गया। दूसरे दिन म. न. पा. ऑफिस में एक पत्र आया हुआ था। जिसमे लिखा हुआ था, ” अगर आप लोग सड़क की कठिनाइयों को दूर नहीं करेंगे तो जनता विद्रोह कर सकती है। ” उसके बाद सभी कठिनाइयों का निवारण हो गया क्योंकि यह प्रयास पंकज का ही था।

 

 

 

 

 

रोड लाइट की समस्या हो, पानी की समस्या हो, व्यापारियों की समस्या हो पंकज के अकेले के प्रयास से सबका निवारण हो जाता था।

 

 

 

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