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Keshav Pandit Novel In Hindi Pdf
गौतम बुद्ध का उपदेश
एक बार गौतम बुद्ध अपने शिष्यों को उपदेश दे रहे थे। तभी उनका एक शिष्य अचानक से खड़ा हुआ और बोला, ” आप उपदेश क्यों देते हैं ? उपदेश देने के पीछे आपका क्या मकसद होता है ? ”
गौतम बुद्ध अपने शिष्य के सभी सवाल को बड़े ही ध्यान से सुन रहे थे। उसके सवाल ख़त्म होने के बाद वे बोले, ” मैं इसलिए उपदेश देता हूँ ताकि लोगों को सही राह दिखा सकूं। लोगों को सहीं और गलत के बीच फर्क बता सकूं। मेरे उपदेश सुनने के बाद कई लोगों को शान्ति मिलती है। वे अपने जीवन में उचित निर्णय ले पाते हैं। ”
इसपर शिष्य ने फिर कहा, ” लेकिन ऐसा क्यों होता है कि आपके उपदेश सुनने आने वालों में से कुछ लोग ही क्यों सही राह पर जाते हैं और कुछ लोगों को ही क्यों शान्ति मिलती है ? हर कोई उचित राह पर क्यों नहीं जाता है ? ”
शिष्य की बात सुनने के बाद गौतम बुद्ध ने कहा, ” एक बात बताओ, यदि आप किसी जंगल से कहीं जा रहे हो और तुम्हे एक व्यक्ति मिल जाए जो आपसे राजमहल का रास्ता पूछे तो आप क्या करेंगे ? ”
शिष्य ने तपाक से जवाब दिया, ” उसे सही रास्ता बता दूंगा जिससे वह अपनी मंजिल पर पहुँच जाए। ”
इसके बाद गौतम बुद्ध ने कहा, ” अगर आपके सही रास्ता बताने पर व्यक्ति गलत रास्ता चुन ले तो ? ”
इसपर शिष्य ने कहा, ” मेरा काम उसे रास्ता बताना है। उस रास्ते पर चलना या ना चलना यह उसके ऊपर निर्भर करता है। मैंने तो उसे सही रास्ता बताया और फिर भी उसने गलत रास्ते का चुनाव किया तो उसमें मैं क्या कर सकता हूँ। ”
इसपर गौतम बुद्ध ने हँसते हुए कहा, ” आपके सवालों का आपने ही जवाब दे दिया है। मैं सिर्फ मार्गदर्शन कर सकता हूँ। उस रास्ते पर चलना या ना चलना लोगों का अधिकार है। उसमें मैं कुछ नहीं कर सकता हूँ। ”
जो लोग मेरे बताये हुए मार्ग का अनुसरण करते हैं वे जीवन में सफल होते हैं और जो लोग उसका अनुसरण नहीं करते और गलत राह पर चलते हैं उसमें मेरा कोई दोष नहीं है। निर्णय लेने के लिए लोग स्वतंत्र हैं।
गौतम बुद्ध की बात सुनकर शिष्य को समझ में आ जाता है कि गौतम बुद्ध उपदेश देकर लोगों को उचित राह दिखाते हैं। उस राह पर चलना या नहीं चलना यह लोगों के हाथ में होता है।
दृढ़ निश्चय हिंदी कहानी
आज महर्षि दयानन्द सरस्वती जी से जुड़ा एक अनोखा किस्सा बताने जा रहा हूँ जिसे पढ़कर आप सोचने को मजबूर हो जाएंगे। स्वामी विरजानन्द जिन्हे लोग दंडी स्वामी भी कहते थे। उनके पाठशाला में शिष्य आते, कुछ समय तक रहते परन्तु उनकी प्रताड़ना को सह नहीं पाते और भाग जाते थे।
बहुत ही कम शिष्य ऐसे निकलते जो पूरी शिक्षा ग्रहण कर पाते। यह दंडी स्वामी की बहुत बड़ी कमजोरी थी। स्वामी दयानन्द सरस्वती को भी कई बार उनसे दंड मिला, लेकिन वे दृढ निश्चयी थे। इसलिए वे डटे रहे।
एक दिन दंडी स्वामी को क्रोध आया और उन्होंने दयानंद की की खूब पिटाई की और बहुत फटकार लगाईं। उन्हें बहुत भला – बुरा कहा। दयानन्द के हाथ में चोट लग गयी और काफी दर्द होने के बाद भी दयानंद ने बुरा नहीं माना बल्कि उठकर गुरूजी के हाथ को अपने हाथ में ले लिया और उसे सहलाते हुए बोले, ” आपके कोमल हाथों को बहुत कष्ट हुआ। इसका मुझे खेद है। मुझे क्षमा कर दें। ”
दंडी स्वामी ने दयानन्द का हाथ झटकते हुए कहा, ” पहले तो गलती करते हो और फिर चमचागिरी। यह मुझे बिलकुल भी पसंद नहीं है। ”
पाठशाला के सभी विद्यार्थियों ने यह दृश्य देखा। उनके नयनसुख नाम का छात्र था। वह दंडी स्वामी का सबसे चाहता विद्यार्थी था। नयनसुख को दयानंद पर सहानुभूति आयी।
वह उठकर गुरूजी के पास गया और बड़े ही संयम से बोला, ” गुरूजी! यह तो आप भी जानते हैं कि दयानंद मेधावी छात्र है, परिश्रम भी बहुत करता है।’ कभी – कभी गलती हो जाती है। उसे माफ़ कर दें। ”
दंडी स्वामी को अपनी गलती का एहसास हो चुका था। उन्होंने दयानंद को अपने करीब बुलाया और उनके कंधे पर हाथ रखकर बोले, ” भविष्य में हम तुम्हारा पूरा ध्यान रखेंगे और तुम्हें पूरा सम्मान देंगे। ”
जैसे ही छुट्टी हुई, दयानंद नयनसुख के पास पहुंचे और उससे कहा, ” मेरी सिफारिश करके तुमने अच्छा नहीं किया। गुरुजी तो हमारे हितैषी हैं। दंड देते हैं तो हमारी भलाई के लिए ही। हम कहीं बिगड़ न जाएं, उनको यही चिंता रहती है।’
यही दयानंद आगे चलकर महर्षि दयानंद बने और वैदिक धर्म की स्थापना हेतु ” आर्य समाज ” की स्थापना की और महर्षि दयानंद सरस्वती के नाम से विश्वविख्यात हुए।
केशव पंडित नॉवेल इन हिंदी Pdf Download
पुस्तक का नाम | बन जाओ सजना तानाशाह केशव पंडित नॉवेल |
पुस्तक के लेखक | केशव पंडित |
भाषा | हिंदी |
श्रेणी | उपन्यास, थ्रिलर, सस्पेंस |
फॉर्मेट | |
पृष्ठ | 357 |
साइज | 45 Mb |






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विजय के सात फेरे अपलोड करें।
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Keshav pandit ke novels Sikandar harega dimag se, fas gaya jadugar, maa takrayegi kanoon se Plsss UPLOAD kijiye