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Kalam Ka Sipahi PDF
कलम का सिपाही उपन्यास के बारे में और उसके कुछ अंश
पाँच साल के अपने परिश्रम का यह फल आपके हाथों में देते हुए मुझे बड़ी खुशी हो रही है । यह काम अब से बहुत पहले होना चाहिए था ( जब कि उसका आँखों-देखा हाल कहनेवाले कुछ और लोग मिल जाते ) और अच्छा होता अगर दूसरे किसी ने किया होता । लेकिन पता नहीं क्यों जीवनी लिखने से हमारे लोग कतराते हैं ।
सभी उन्नत देशों में यह विधा बहुत आगे बढ़ी हुई है, पर हमारी भाषा इसमें बिलकुल कंगाल है। या तो हम जानते ही नहीं कि अच्छी ;जीवनी होती कया है, या कुछ इस तरह की गाँठ हमारे लिखनेवालों के मन में पड़ी हुई है कि जीवनी साहित्य की कोई सृजनात्मक विधा नहीं है — या फिर भय, कोरा भय, पथ की दुर्गगता का। जो भी बात हो, यह एक अठल सच्चाई है कि हमारे यहाँ जीवनियों का एक सिरे से अकाल है, जब कि योरप की जबानों में यह चीज आसमान पर पहुँची हुई है ।
कोई बड़ा साहित्यकार नहीं है, कलाकार नहीं है, वेज्ञानिक नहीं है, जननायक नहीं है, जिसकी कई-कई जीवनियाँ, एक से एक अच्छी, न हों । स्टिफ़न ज्वाइग जितना अपनी कहानियों के बल पर जिन्दा रहेगा, उतना ही बाल्ज़ाक की अपनी जीवनी के बल पर जिन्दा रहेगा ।
आन्द्रे मोरआ की लिखी हुई शेली की जीवनी “एरियल ” किसने नहीं पढ़ी ? अविग स्टोन की लिखी हुई वेन गो की जीवनी “ लस्ट फ़ॉर लाइफ़ ‘ किसने नहीं पढ़ी ? एमिल लुडविग का ताम किसने नहीं सुना जो सिर्फ़ अपनी जोवनियों के बल पर योरप के साहित्य में अपनी एक खास जगह बनाये हुए है? हर साल सैकड़ों, हज़ारों की तादाद में जीवनियाँ निकलती आती हैं। एक ही आदमी की पच्चीसों जीवनियाँ मिल सकती हैं।
अच्छी से अच्छी प्रतिभाएँ उनको लिखती है, पढ़नेवाले उपन्यासों से भी ज़्यादा चाव से उनको पढ़ते हैं । लेकिन हमारा तो ढंग ही निराला है । हमारे यहाँ तो अभी बेचारी जीवनी अछत की तरह ड्योढ़ी के उस पार खड़ी है — अन्दर आने की मनाही है!
इन पाँच वर्षों में मेरे कितने ही शुभचिन्तकों ने मुझसे पूछा होगा — अमृत जी, आप अपनी कोई चीज नहीं लिख रहे हैं ?
कभी तो मुझे झुंझलाहट भी महसूस हुई, लेकिन अकसर मैं मुस्कराकर रह गया । मैं कहना चाहता था कि यह मेरी’ ही चीज़ है जो मैं लिख रहा हैँ, कि यह भी एक उपन्यास ही है जिसका नायक प्रेमचंद नाम का एक आदमी है, फ़र्क़ बस इतना ही हैं कि यह आदमी मेरे दिमाग़ की उपज नहीं है, हाड़- मांस का एक पुतला है जो इस धरती पर डोल चुका है और समय की पगडंडो पर अपने पैरों के कुछ निशान छोड़ गया हैं, उसको मारने-जिलाने की, जैसे मन चाहे तोड़ने-मरोड़ने की आज़ादी मुझे नहीं है, घटना-प्रसंगों का आविष्कार करने की छूट भी मुझे नहीं है, कितने ही मोटेनमोटे रस्सों से मैं अच्छी तरह ( या बुरी तरह ) खूंटे से बँधा हुआ हुँ। लेकित मुझे उसकी शिकायत नहीं है क्योंकि मैं जानता हूँ कि पूर्ण स्वच्छन्द्रता उपन्यास की कहानी कहते समय भी नहीं रहती; वहाँ भी कहानी कहनेवाला जीवन के खूँटे से, प्रतीति के खूंटे से बँधा ही रहता है।
पुस्तक का नाम | Kalam Ka Sipahi PDF |
पुस्तक के लेखक | प्रेमचंद |
भाषा | हिंदी |
साइज | 44.9 Mb |
पृष्ठ | 664 |
श्रेणी | उपन्यास |
फॉर्मेट |
कलम का सिपाही Pdf Download


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