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Hindi Sahitya Ka Itihas Dr Nagendra Pdf
हिंदी साहित्य का इतिहास के बारे में
जीवन के सूक्ष्म शाश्वत उपादानों के रूप निर्माण मे भौतिक बाह्य परिस्थितियों का कितना महत्वपूर्ण योग रहता है इसका अनुमान रीतियुगीन परिस्थितियों तथा उस काल की साहित्यिक प्रवृत्तियों के विश्लेषण द्वारा लगाया जा सकता है। युग चेतना की बहिर्मुखी अभिव्यक्ति साहित्य का प्रयोजन है अथवा नहीं इस विषय पर चाहे कितना ही मतभेद हो परन्तु यह निर्विवाद है कि युग चेतना से विच्छिन्न साहित्य के प्रेरक तत्व का अस्तित्व अकल्पनीय है।
चाहे वह साहित्य जितना भी अतर्मुखी और वैयक्तिक क्यों न हो। हिंदी साहित्य में रीतिकाल का आरंभ संवत 1700 से माना जाता है। इस समय मध्यकालीन राजनितिक व्यवस्था का आधार था व्यक्तिवादी निरंकुश राजतंत्र। इस प्रकार की व्यवस्था में शासक ही राष्ट्र के भाग्य का विधाता, युग चेतना का नियामक तथा कुछ सीमा तक एक विशिष्ट जीवन दर्शन का प्रतिपादक भी होता है।
उसके सार्वभौम व्यक्तित्व में समस्त अधिकार केंद्रित रहते है। जब शासक विजातीय हो तो इस वैयक्तिक तत्व की निरकुंशता और भी बढ़ जाती है। उसकी दृष्टि यदि समन्वयवादी न हुई तो शासक तथा शासित का संबंध केवल शोषक और शोषित का ही रह जाता है।
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