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सागर के नीचे एक राज्य था। जहां एक जलपरी रहा करती थी। उसके पिता उस राज्य के राजा थे। जलपरी एक जलपरे से बहुत प्रेम करती थी।
वह उसके साथ सागर पर घूमने जाती। सागर के तट पर बैठ घंटों वे दोनों बातें करते रहते थे। एक दिन की बात है वे दोनों आपस में बात कर रहे थे तभी एक जलपरी सेविका ने आकर बताया कि उसके पिता की तबीयत बहुत खराब है।
यह सुनकर जलपरी वहां से तुरंत ही अपने घर के लिए चली गई। उसी समय उस तट पर जलपरे की बहन आई और उसने जलपरे से पूछा, “ओहो!आज जलपरी नहीं आई क्या ?”
तब जलपरे ने कहा, “आई थी, अभी एक सेविका ने आकर बताया कि उसके पिताजी की तबीयत बहुत खराब है और इसलिए वह चली गई। ” जब जलपरी अपने पिताजी के पास पहुंची तो उसके पिता ने कहा, ” कि बेटा अब मेरी उम्र बहुत हो चुकी है और मेरी तबीयत भी अक्सर खराब रहती है। इसीलिए मैं सोच रहा हूं कि इस राज्य का नया शासक चुना जाए। ”
“जैसी आपकी इच्छा ” जलपरी ने कहा। उसके बाद जलपरी के पिताजी ने एक मीटिंग बुलाई और उसमें उन्होंने राज्य के लिए चुनाव कराने की घोषणा की।
उस चुनाव में जलपरी को नया शासक चुना गया क्योंकि जलपरी बहुत ही विनम्र थी और वह राजा की पुत्री भी थी जिससे उसे राज्य का अनुभव भी था और इसीलिए राज्य की जनता ने जलपरी का चुनाव किया।
उसके बाद कुछ दिन तो सब कुछ सही रहा। परन्तु कुछ दिन बाद जलपरी का स्वभाव अचानक से ही बहुत खराब हो गया। वह बात – बात पर सबको डांटती और शासक होने का रौब दिखाने लगती।
जलपरे और उसकी बहन ने भी उसे समझाने की बहुत कोशिश की। जलपरी के पिता ने भी उसे समझाने की बहुत कोशिश की लेकिन वह नहीं मानी।
एक दिन जलपरे ने जल परी से कहा, ” तुम मुझसे प्रेम करती हो तो क्या अब हम विवाह बंधन में बंध जाएं ? ” तब जलपरी ने कहा, ” तुम मेरे लायक नहीं हो। अब मैं इस राज्य की शासक हूं और एक तुम साधारण से जलपरे। अतः हमारा मिलन अब नहीं हो सकता। ”
जलपरे को उसकी बात बहुत बुरी लगी और वह वहां से चला गया। एक दिन की बात है जलपरी समुद्र की सतह पर टहल रही थी तभी उसे अचानक एक जहाज दिखी।
वह राजघराने की जहाज थी जिसमें एक राजकुमार बैठा हुआ था। जलपरी तेजी से उस जहाज के पास गई और राजकुमार से कहा, ” मैं समुद्र के नीचे बसे एक राज्य का शासक हूँ और तुम एक राजकुमार। क्या हम एक अच्छे दोस्त हो सकते हैं ?”
राजकुमार ने कहा, ” क्यों नहीं हम एक अच्छे दोस्त हो सकते हैं ” यह बात बात करते हुए जलपरे और उसकी बहन ने देख लिया था और वे दोनों तुरंत ही जलपरी के पिताजी के पास पहुंचे और उनसे कहा, ” जलपरी जब से शासक बनी है उनका व्यवहार बहुत ही बदल गया है। अब तो मानव के साथ मिलने लगी है। आपको तो पता ही है मानव बहुत ही चालाक होते हैं और कभी भी जलपरी को नुकसान पहुंचा कर इस राज्य पर आक्रमण कर सकते हैं। ”
तब जलपरी के पिता ने कहा, ” चिंता ना करें, समय आने पर सब कुछ सही हो जाएगा। राजकुमार और जलपरी पर ध्यान दें। ” एक दिन की बात है राजकुमार ने जलपरी से कहा, ” आओ मेरे जहाज पर बैठ जाओ। मैं तुम्हें सागर की सैर कराता हूं और अपनी खूबसूरत राजधानी को भी दिख लाता हूं। ”
जलपरी राजकुमारी पर विश्वास कर चुकी थी। राजकुमार के कहने पर वह जहाज पर बैठ गई। यह राजकुमार की चाल थी। राजकुमार ने जलपरी के जहाज पर बैठते ही उसे बंधक बना लिया और उसे अपने राज्य की तरफ ले जाने लगा। जलपरी ने उससे कहा, ” मुझे कहां ले जा रहे हो ? और अगर ले ही जाना था तो फिर हमें बंधक क्यों बनाया ?”
राजकुमार हंसा और बोला, ” हम तुम्हें अपने राज्य ले जा रहे हैं और तुम्हारे समुद्र की बेशकीमती मणि के मिलने के बाद ही हम तुम्हे छोड़ेंगे। ” जलपरी को अपनी गलती का एहसास हो चुका था। वह रोने लगी।
तभी जलपरे ने अपने सैनिकों के साथ अचानक से उस जहाज पर हमला कर दिया। अचानक हुए इस हमले से राजकुमार और उसके सैनिक आश्चर्यचकित रह गए।
कुछ ही क्षणों में जलपरे और उसके सैनिकों ने राजकुमार को हरा दिया और उसे मौत के घाट उतार दिया। उसके बाद जलपरे ने जलपरी को छुड़ाकर राज्य में वापस लेआया।
जलपरी अपनी गलती पर शर्मिंदा थी। उसने कहा कि, ” मैं अब शासक का पद छोड़ना चाहती हूं। मैं इस पद के काबिल नहीं हूं। ” उसके बाद जलपरे को राज्य का नया शासक चुना गया और उसके बाद जलपरी के साथ उसका विवाह हो गया और सभी लोग खुशी-खुशी रहने लगे।
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