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Hindi Bhasha Evam Sahitya Ka Itihas Pdf Download

नमस्कार मित्रों, इस पोस्ट में हम आपको Hindi Bhasha Evam Sahitya Ka Itihas Pdf देने जा रहे हैं, आप नीचे की लिंक से Hindi Bhasha Evam Sahitya Ka Itihas Pdf Download कर सकते हैं।

 

 

 

Hindi Bhasha Evam Sahitya ka Vastunisth Itihas pdf

 

 

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रजनी प्रजापति अपने व्यवसाय के लिए प्रयास शुुरू कर चुकी थी इसी सिलसिले ने वह वाराणसी आई हुई थी वहां कैंट स्टेशन के बाहर एक दुकान में बाँस से बना  हुआ सब सामान दिखाई पड़ रहा था यहाँ तक कि बाँस के रेशे से बना हुआ पर्दा भी दिखाई दे रहा था। उसने परदे को खरीद लिया जो २५० रूपये का था ,फिर दुकानदार से पूछने लगी -आप यह सब सामान कहाँ से मंगवाते हैं। क्यों कि हमें यह सब बनाने की कंपनी खड़ी करनी है ?

 

 

 

 

दुकान दार -रजनी से बोला -आप यहाँ से रामनगर चले जाइये वहां बांस की वस्तुएं तैयार करने वाले बहुत से कारीगर आप को मिल जायेंगे और यह उनका पैतृक व्यवसाय भी है। वहां पर उनकी -बांस फोड़वा -नाम की एक बस्ती है वहां आपको पुराने और आधुनिक दोनों तरह के कारीगर मिल जायेंगे। रजनी बिना विलम्ब किये राम नगर की -बांस फोड़वा -बस्ती में पहुँच गई ,वहां देखा ,कई परिवार अपने इस धंधे में लगे हुए थे ,रजनी वहां एक उम्र दराज व्यक्ति से बात करने लगी ,वह बोली -चाचा -इस कार्य में रोज आप को कितनी आमद हो जाती है।

 

 

 

वह बुजुर्ग बोला  -बेटी -यह तो हम लोग दूसरे के लिए बना रहे हैं। तीन दिन बाद यह बनाया हुआ सामान यहां से चला जायेगा ,और हमें रोज ५००रूपये  के हिसाब से पैसा मिलता है। रजनी बोली -चाचा -आपको १२ महीने के लिए पर्याप्त काम मिलता है क्या ?वह बुजुर्ग बोला -इसी बात का तो रोना है ,हमें पर्याप्त काम नहीं मिलता है। रजनी ने पूछा चाचा -क्या बांस हरा रहने पर सामान तैयार होता है ?वह बुजुर्ग आदमी बोला -नहीं बेटी,आधा पका हुआ और सूखे बांस से भी सामान तैयार होता है।

 

 

 

 

रजनी उस बुजुर्ग की बातों से संतुष्ट होते हुए बोली -हम आपसे १० दिन बाद मिलेंगे। रजनी अब अपने गांव बिंदकी आ गई थी। दूसरे दिन वह रघुराज सोनकर से मिली और इस कार्य के लिए सहयोग करने के लिए कहा। रघुराज सोनकर ने बंगलोर में फोन पर प्रताप भारती को सारी बात  कह दिया ,प्रताप भारती ने रजनी के लिए पांच लाख रूपये का सहयोग करने के लिए कह दिया। रजनी अब सुधीर से मिलने उसके घर आ गई थी।

 

 

 

सुधीर अपने परीक्षा की तैयारी में व्यस्त था। थोड़े ही समय में रजनी ने उसे सारी स्थिति कह कर अपने घर चली आयी। रजनी मजदूरों की सहायता से बाँस इकट्ठा करने लगी ,तीन सामान बनाने वाले कारीगर को भी ढूंढ़ लाई और बाँस से कुर्सी ,मेंज ,इत्यादि जरूरत का सामान तैयार होने लगा। सभी  लोग कौतुहल से देखते थे। तैयार सामान को रजनी ट्रेक्टर पर लाद कर बाजार ले जाती ,दो आदमी सामान बेचने के लिए रख दिया था।

 

 

 

जितना सामान तैयार होता उसे बाजार में लोग फौरन खरीद लेते थे। इस सारे कार्य में मेहनत बहुत हो रही थी लेकिन इसका भविष्य उज्वल था। सुधीर की परीक्षा हो चुकी थी ,वह रजनी को इतना मेहनत करते देख कर परीक्षा के परिणाम की परवाह किये वगैर ही उसके साथ जुड़ गया ,अब तो रजनी का व्यापार बहुत तीब्र गति से बढ़ने लगा।

 

 

 

सुधीर और रजनी ने एक बड़ा सा खली प्लाट खरीद लिया था ,और उसमे ही बड़े पैमाने पर कंपनी को शुरू कर दिया था। सुधीर और रजनी दोनों एक महीने के बाद राम नगर पहुंचे और उस बुजुर्ग प्यारेलाल से १५ कारीगर के लिए कहा -बुजुर्ग प्यारेलाल ने मेहनताना पूछा तो रजनी ने उसे बताया कि आपको ७०० रुपया प्रति दिन मिलेगा तथा १२ महीने आप को आजीविका मिलती रहेगी।

 

 

 

सुधीर और रजनी दोनों १५ कारीगर लेकर बिंदकी आ गए थे ,इनका व्यवसाय बहुत अच्छे ढंग से प्रगति कर रहा था सुधीर ने इस कंपनी को (रजनी हस्त कला केंद्र )नाम दिया था। यहां के बने हुए सामान की कई शहरों में बहुत मांग थी।

 

 

 

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