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इस पुस्तक के बारे में——-
दिकुआ के प्रभाव में आने के बाद मुंडा जनजाति के धार्मिक विश्वासों को भी ठेस पहुंची थी। ये लोग अपने कुल देवता के निवास स्थान पेड़, पशु, पक्षी या किसी भी प्रकृति संबंधी वस्तु पर मानते थे परन्तु जब शोषकों के द्वारा विभिन्न कानूनों और नीतियों के द्वारा इन पर भी अपना कब्जा करने का प्रयास किया तब इन्हे काफी दुःख हुआ जो अंततः विद्रोह का कारण बना।
शुरुआती दौर में मुंडा सरदारों ने हिन्दू पुरोहितो को संरक्षण देकर उन्हें दान में भूमि देना प्रारंभ कर दिया। किन्तु धीरे-धीरे इन पुरोहितो का भी व्यवहार जमीदारो जैसा हो गया। इसी तरह कई मुंडा जनजाति के लोग परेशान होकर ईसाई मिशनरियो की शरण ली।
अपने अधिकारों को वापस मिलने तथा अपने हितो की रक्षा होने के आश्वासन पर इन लोगो ने ईसाई धर्म को स्वीकार करना शुरू कर दिया। परन्तु, इनकी आशाओं के विपरीत आवश्यकता पड़ने पर इनका साथ नहीं दिया। अब मुंडा लोगो को किसी पर विश्वास नहीं रहा तथा पूर्ण रूप से उनका मोह भंग हो चुका था।
इसी समय विरसा मुंडा ने जनजाति के लोगो को एकेश्वरवाद की ओर आकृष्ट किया और बताया कि सिंगबोंगा की दया से समाज में पुनः आदर्श व्यवस्था आएगी और शोषण एवं उत्पीड़न का काल समाप्त हो जायेगा। इन विचारो से प्रभावित होकर वे इन क्षेत्रो से दिकुओं को बाहर निकालने के लिए उन पर आक्रमण करना शुरू कर दिया।
Birsa Munda movement pdf
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