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Birsa Munda history pdf
इस पुस्तक के बारे में——
कालांतर में यह अंग्रेजी शासन फ़ैलकर उन दुर्गम हिस्सों में पहुँच गया जहां के निवासी इस प्रकार की सभ्यता संस्कृति और परंपरा से नितांत अपरिचित थे। आदिवासियों के बीच ब्रिटिश शासको ने उनके सरदारों को जमींदार घोषित कर उनके ऊपर माल गुजारी जमा करने का बोझ लाद दिया।
इसके अलावा समूचे आदिवासी क्षेत्र में महाजनो, व्यापारियों और लगान वसूलने वालो का एक ऐसा वर्ग घुसा दिया गया जो अपने चरित्र से ही ब्रिटिश दलाल था। ये बिचौलिया जिन्हे मुंडा दिकू कहते थे। ब्रिटिश तंत्र के सहयोग से मुंडा आदिवासियों की सामूहिक खेती को तहस नहस करने लगे और तेजी से उनकी जमीने हड़पने लगे थे।
वे तमाम क़ानूनी गैर क़ानूनी शिकंजो में मुंडाओं को उलझाते हुए उनके भोलेपन का लाभ उठाकर उन्हें गुलामो जैसे स्थिति में पहुंचाने में सफल रहे थे। हालांकि मुंडा सरदार इस स्थिति के विरुद्ध लगातार 30 वर्षो तक संघर्ष करते रहे किन्तु विरसा मुंडा ने इस संघर्ष को नई ऊंचाई प्रदान की।
विरसा मुंडा का जन्म बटाईदार परिवार में सन 1874 में हुआ था। वह अपने जीवन के शुरुआती दौर में मिशनरी में जाकर ईसाई भी हो चुका था। उस समय आमतौर पर मुंडा लोग संकट काल में साहबी सहायता पाने के लोभ में ईसाई हो जाते पर अपने रीति रिवाज जारी रखते थे।
किन्तु विरसा का ईसाई बनने का लक्ष्य उस समय किसी भी मुंडा के लिए बहुमूल्य और दुर्लभ शिक्षा अर्जित करना था। सरदारों के संघर्ष की प्रभावहीनता तथा मुंडा लोगो के गिरे हुए जीवन स्तर से खिन्न विरसा सदैव ही उनके उत्थान और गरिमापूर्ण जीवन के लिए चिंतित रहा करता था।
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