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बिरसा मुंडा जीवनी Pdf | Birsa Munda Biography Pdf

आज इस पोस्ट में हम आपको Birsa Munda Biography Pdf देने जा रहे हैं, आप नीचे की लिंक से इसे फ्री डाउनलोड कर सकते हैं और यहां से Bhagat Singh Biography in Hindi pdf डाउनलोड कर सकते हैं।

 

 

 

Birsa Munda Biography Pdf

 

 

 

 

 

 

 

बिरसा मुंडा को आदिवासी नेता तथा लोकनायक के रूप में याद किया जाता है। आदिवासी समुदाय के मध्य में इन्हे उच्च स्थान प्राप्त है। रांची तथा सिंह भूमि के आदिवासी जन समुदाय में बिरसा मुंडा को ‘बिरसा भगवान’ कहकर याद किया जाता है इससे बिरसा मुंडा की लोकप्रियता स्वतः ही पता लग जाती है। बिरसा मुंडा का संबंध मुंडा जाति से था। मुंडा आदिवासी जन समुदाय को अंग्रेजी हुकूमत के विरुद्ध खड़ा करके बिरसा मुंडा को मुंडा जन समुदाय ‘बिरसा भगवान’ का सम्मान प्राप्त हुआ था।

 

 

 

 

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के आंदोलन 19वीं शदी के इतिहास में बिरसा मुंडा का महत्वपूर्ण स्थान है तथा बिरसा मुंडा स्वतंत्रता आंदोलन की भूमिका की एक मुख्य कड़ी थे। बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवंबर 1875 को रांची जिले के उलिहतु गांव में एक आदिवासी परिवार में हुआ था। बिरसा के पिता का नाम सुगना मुंडा तथा माता का नाम करमी हतु था। बृहस्पतिवार को जन्म होने के कारण आदिवासी रीति रिवाज के अनुसार बृहस्पतिवार के हिसाब से उनका बिरसा नामकरण किया गया था।

 

 

 

 

बिरसा के जन्म के बाद उनका परिवार आजीविका की खोज में उलिहतु से कुरुमब्दा नामक स्थान पर आकर रहने लगा वहां के खेतो में काम करते हुए जीवन यापन करने लगा पुनः आजीविका के लिए बिरसा का परिवार बम्बा नामक स्थान पर चला गया। बिरसा मुंडा की पारिवारिक स्थिति दयनीय अवस्था में थी। इनके माता पिता आजीविका के लिए घुमक्कड़ी जीवन व्यतीत करते थे।

 

 

 

 

बिरसा का अपने परिवार के साथ अधिकांश समय चल्कड़ में व्यतीत हुआ जहां बिरसा अपने दोस्तों में व्यस्त रहते थे। कुछ समय के उपरांत थोड़ा बड़ा होने पर बिरसा भेड़ को चराने के लिए जंगल में जाते थे। भेड़ चराते समय बिरसा बांसुरी वादन करते थे जिसका प्रतिफल यह था कि समय के अंतराल के साथ बिरसा बांसुरी वादन में पूर्ण निपुण हो गए। संगीत में बिरसा को आनंद मिल रहा था उन्होंने शौकिया तौर पर कद्दू से ‘तुइला’नामक एक तार वाला बाद्ययन्त्र बनाकर बजाते थे।

 

 

 

 

बिरसा मुंडा ने अपने जीवन का कुछ रोमांचकारी पल अखारा गांव में भी व्यतीत किया था। पारिवारिक स्थिति ठीक नहीं रहने के कारण बिरसा मुंडा अपने ननिहाल आयुभातु नामक स्थान पर चले गए। आयुभातु में रहने के दौरान बिरसा स्कूल जाते थे। उन्होंने दो वर्ष अपनी ननिहाल में व्यतीत किया था। बिरसा पढ़ने में बहुत होशियार थे। इनकी शिक्षा का आंकलन करने के बाद स्कूल के अध्यापक जयपाल नाग ने बिरसा को जर्मन मिशन स्कूल में शिक्षा लेने का सुझाव दिया।

 

 

 

 

वह दौर ऐसा था जब क्रिश्चियन स्कूल में शिक्षा प्राप्त करने के लिए ईसाई धर्म अपनाना जरुरी था। बिरसा ने शिक्षा के उद्देश्य को पूर्ण करने के लिए अपना धर्म परिवर्तन कर लिया। फलस्वरूप बिरसा का नाम बिरसा डेविड हो गया जिसे बाद में बिरसा दाऊद कहा जाने लगा। बिरसा मुंडा के जीवन में स्वामी आनंद पांडेय से मुलाकात हुई जो इनके जीवन का नया मोड़ था।

 

 

 

 

स्वामी आनंद पांडेय ने बिरसा मुंडा को हिन्दू धर्म तथा महाभारत ग्रंथ के पात्रो की जानकारी दिया जिससे बिरसा मुंडा बहुत प्रभावित हुए। लोक मान्यताओं के अनुसार 1895 में कुछ अलौकिक घटना घटी जिस कारण से लोगो को ऐसा विश्वास हो गया कि बिरसा के स्पर्श करते ही रोगी व्यक्ति निरोगी हो जाता है। उसका रोग खत्म हो जाता है लोग पूर्ण विश्वास के साथ बिरसा को भगवान का अवतार मानते थे।

 

 

 

 

बिरसा मुंडा की बातो को सुनने के लिए अधिक से अधिक संख्या में जन समुदाय एकत्रित होने लगे। जन समुदाय का बिरसा मुंडा के ऊपर पूर्ण विश्वास हो गया था। बिरसा मुंडा ने पुराने अंध विश्वासों का खंडन किया सभी लोगो को हिंसा तथा मादक पदार्थो से दूर रहने के लिए प्रेरित किया इससे बिरसा मुंडा के प्रभाव में व्यापक बृद्धि हुई। बिरसा मुंडा की बातो का जन समुदाय के ऊपर इतना प्रभाव पड़ा कि ईसाई धर्म को स्वीकार करने वालो की संख्या घटने लगी तथा जो मुंडा जन समुदाय ईसाई धर्म स्वीकार कर चुका था वह सभी अपने मूल धर्म में लौट आये।

 

 

 

 

बिरसा मुंडा ने लगान माफ़ी के लिए 1 अक्टूबर 1894 को सभी मुंडा जाति के नवयुवको को एकत्रित करते हुए अंग्रेज सरकार के खिलाफ आंदोलन चलाया। बिरसा मुंडा को अंग्रेज सरकार ने 1895 में गिरफ्तार कर लिया तथा हजारी बाग़ के केंद्रीय जेल में इन्हे दो वर्ष के कैद की सजा दी गयी लेकिन बिरसा मुंडा तथा उनके सहयोगियों ने अकाल पीड़ित जनता को सहायता का संकल्प रखा था जिससे बिरसा मुंडा को अनेक जीवन काल में ही सभी लोगो ने एक महापुरुष का दर्जा दे दिया था।

 

 

 

 

सभी लोग बिरसा मुंडा को ‘धरती बाबा’ के नाम से जानने लगे थे। बिरसा मुंडा से प्रभावित होकर ही मुंडा जाति के नवयुवको के भीतर संगठित होने की चेतना जागृत हुई। बिरसा मुंडा ने अंग्रेज सरकार के खिलाफ सक्रीय भागीदारी किया था। बिरसा मुंडा ने 1897 से 1900 तक सभी मुंडा जाति के नवयुवको को संगठित किया तथा बिरसा मुंडा के मुंडा जाति के नवयुवक सहयोगियों तथा अंग्रेज सरकार के बीच में 1897 से 1900 तक लगातार संघर्ष होते रहे।

 

 

 

 

बिरसा मुंडा के सहयोगियों ने अंग्रेजो की नाक में दम कर दिया था। बिरसा मुंडा अपने चार सौ सहयोगियों के साथ तीर कमान से लैस होकर 1897 में खूंटी थाने पर धावा बोल दिया। 1898 में तांगा नदी के तट पर बिरसा मुंडा के सहयोगियों ने लड़ते हुए अंग्रेजी सेना को परास्त कर दिया था लेकिन अंग्रेजी सरकार ने बदले की कार्यवाही करते हुए उस इलाके के अनेक आदिवासी नेताओ को कैद कर लिया।

 

 

 

 

डोम बाड़ी पहाड़ी पर जनवरी 1900 में अंग्रेजी सेना तथा बिरसा मुंडा के सहयोगियों के साथ पुनः संघर्ष हुआ जिसमे अंग्रेजी सेना के द्वारा बहुत से बच्चो तथा औरतो की हत्या कर दी गयी। बिरसा मुंडा जब एक जन सभा को संबोधित कर रहे थे तब अंग्रेज सिपाहियों ने बिरसा मुंडा के कुछ सहयोगियों को गिरफ्तार कर लिया था। 3 फरवरी 1900 को चक्रधरपुर में बिरसा मुंडा को भी कैद कर लिया गया था।

 

 

 

 

बिरसा मुंडा को रांची कारागार में लाया गया जहां 9 जून 1900 को बिरसा मुंडा ने अंतिम सांस लिया। बिरसा मुंडा को आज भी बिहार, उड़ीसा, झारखंड, छत्तीसगढ़ तथा पश्चिम बंगाल का आदिवासी जन समुदाय भगवान की तरह पूजता है। लोकगीतों में बिरसा मुंडा का भरपूर प्रभाव झलकता है। ‘धरती बाबा’ का नाम प्रत्येक आदिवासी समुदाय के होठो पर रहता है। बिरसा मुंडा आदिवासी समुदाय को मूल आदिवासी धार्मिक व्यवस्था के लिए प्रेरित किया था।

 

 

 

बिरसा की शिक्षा से प्रभावित होकर आदिवासी समुदाय ने बिरसा से आशीर्वाद माँगा जो आदिवासी समुदाय के लिए भविष्यवक्ता बन गए थे। बिरसा मुंडा सदैव ही एक लोक नायक के रूप में अमर रहेंगे जिन्होंने देशहित के लिए अंग्रेजी सरकार से लड़ने का पराक्रम दिखाया था।

 

 

 

 

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