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Bhajan Sangrah Pdf / भजन संग्रह पीडीऍफ़

देख वीर के समवसरन में, मानस्तम्म महान । मानी जन का गलता मान, देख ० ॥ ठेक ॥
रूदो हजार से अधिक पुगनी,
वीर समय की सुनो कहानी । भये प्रश्चू जब केवलज्ञानी,
एक पहर तक खिरी न बानी । अवधि विचार इन्द्र गौतम,
लेने की दिल ठान ॥ मानी० ||
चृद्धरूप भरे सुरपति चाला, पहुँचा गोतमद्विज की शाला। शिष्य कौन सबसे गुणवाला,
इतना कह इक पद्म निकाला ॥
कठिन प्रद्य को सुनत अकल,
गौतम की मह दैरान॥ मानी० ॥
गोतम कहें मान में आकर,
तू क्या समभेगा है चाकर | देखें तेरे गुरु को जाकर,
चले ग्रकड़कर पेर बढ़ाकर शिष्य पांच सौ साथ लिये मन, में विधाद की ठान ॥ मानी० ॥
ज्यों ही निकट श्रभू के आये, मान त्यागकर जिनगुण गाये । गणघर का पद गौतम पाये, नेया पार रतन! की कर दो, महावीर भगवान ॥ मानी० ॥
चेतन क्यों पड़े सो रहे, मौका ना सोने का। ऐसा समय अनमोल गया, हाथों से खोने का ॥
मोह नीद में गमाये काल, पापीजियरा, पापीजियरा । राग द्वेष में जमाये ख्याल, पापीजियरा, पापीजियरा ॥|
टेक बालपन खेल खोये, वहाँ ज्ञान भी न होये । खेल-कूद में गाय-रोय में, बिताँये जियरा ॥
पापी, बी. ए. पास की पढ़ाई, बाबू फ़ेसन बनाई। तत्त्मेद को ना जाना, दुख पाये जियरा ॥ पापी, झाई जवानी छाई दगन में, केलिकरी सँग नारि मवन में । छोड़ चल दिये मारे, इक आत्मा तुम्हारे, स्याग नींद ये ‘रतन’, सख पाये जियरा ॥ पापी।
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