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पुस्तक के बारे में
धातु-उपधातु या रत्न-उपरत्न अथवा रस-उपरस आदि द्रव्यों को वनस्पतियों के स्वरस में घोंट, टिकिया बना, सुखा तथा सम्पुट में रखकर अग्नि में पकाने की क्रिया को ‘पुट’ कहते हैं। पुटों का ज्ञान होना प्रत्येक वैद्य के लिए आवश्यक है, क्योंकि कम या अधिक पकी हुई औषधि हानि पहुँचाती है और अच्छी तरह पकी हुई औषधि ही हितकारक होती है।
पुट देने से लाभ
पुटों से लौहादिक धातुओं का निरुत्य मारण होता है, अर्थात् पुट योग से बनी हुई लौहादिक धातुओं को मित्रपंचक के साथ फूँकने पर भी वे पुनः जीवित नहीं होते। लौहादिक का अपुनर्भव, पुटों से ही होता है। बार-बार पुट देने से शरीर के अन्दर अनेक गुण पहुँचाने वाली शक्ति भस्मों में उत्पन्न होती है।
बार-बार पुट देने से भस्म में अत्यन्त सूक्ष्मता आ जाती है। पुट के ही प्रभाव से भस्में अंगुलियों की रेखाओं के अन्दर प्रविष्ट हो जाती हैं। जिसे रेखा पूर्ण भस्म’ कहा जाता है। पुट के योग से रत्न-उपरत्न आदि में लघुता एवं सूक्ष्मता आ जाती है और उनकी भस्में शरीर में शीघ्र ही व्याप्त होकर पाचक रसों को उद्दीप्त-करती हैं तथा अपने गुण प्रकट करती हैं।
पुट दी हुई धातु-भस्मों में जारित संस्कारयुक्त पारद के सदूरा ही अधिक गुण पाये जाते हैं। जिस तरह बाह्य पुट के प्रभाव से पत्थर के अन्दर वह्वि प्रवेश कर जाती है। उसी तरह चूर्ण किये हुए लौहादिक धातु-द्रव्यों में भी पुट द्वारा वह्नि शीघ्र प्रवेश कर अनेक गुणयुक्त बना देती है।
आजकल पाश्चात्य वैज्ञानिकों ने तेजाबों (^८।५५) के भस्म द्वारा भी भस्म बनाने की विधि प्रचलित की है, एलोपैथी में उसका व्यवहार होता है, किन्तु वह निरुत्थ नहीं होती है अतएव प्रत्येक चिकित्सक को चाहिए की पुटों द्वारा सिद्ध की हुई भस्मों का प्रयोग करें, क्योंकि पुट द्वारा सिद्ध की हुई भस्में लघुता-सूक्ष्मता आदि गुणों से युक्त होती हैं।
और शरीर के अन्दर शीघ्र प्रवेश कर रक्त में मिलकर यथोचित रूपेण अपना कार्य प्रारम्भ कर देती हैं। अशुद्ध भस्में शरीर के अन्दर पहुँचकर शरीरस्थ रासायनिक द्रव्यों से सम्मिश्रित होकर पुनः अपने स्वरूप को प्राप्त ऊर शारीरिक पेशियों का नाश करती हैं।
वैज्ञानिक यह मानते हैं कि प्रत्येक पदार्थ गुरुत्वाकर्षण के कारण ऊपर की तरफ फेंकने पर ‘भी पृथ्वी की ओर गिरता है। अतः धातुएँ जल्दी ही पृथ्वी की ओर जाती हैं, किन्तु पुट देने से उमकी गुरुता नष्ट हो उनमें लघुता आ जाती है और अत्यन्त सूक्ष्म होने से शरीर के सूक्ष्मावयवों में मिलकर रक्त के साथ सम्पूर्ण शरीर में व्याप्त अपने गुण करती हैं। स सब पुट के ही गुण हैं। अब नीचे पुटों के भेद लिखे जाते हैं।
Baidynath Ayurved Sarsangrah Hindi PDF Download

पुस्तक का नाम | Baidynath Ayurved Sarsangrah Hindi PDF |
पुस्तक के लेखक | बैद्यनाथ आयुर्वेद भवन |
भाषा | हिंदी |
साइज | 41.2 Mb |
पृष्ठ | 866 |
श्रेणी | आयुर्वेद |
फॉर्मेट |
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