नमस्कार मित्रो, इस पोस्ट में हम आपको Arunima Sinha Biography In Hindi देने जा रहे है। आप नीचे की पोस्ट से Biography Of Arunima Sinha In Hindi पढ़ सकते है और Arunima Sinha Jivan Parichay जान सकते है।
Arunima Sinha Biography In Hindi / अरुणिमा सिन्हा जीवन परिचय

अरुनिमा सिन्हा का पूरा नाम – अरुनिमा सिन्हा।
जन्म तारीख – 20 जुलाई 1988।
जन्म स्थान – अम्बेडकर , नगर उत्तर प्रदेश।
शिक्षा और प्रशिक्षण – नेहरू इंस्टीट्यूट ऑफ़ माउंटेनियरिंग।
पुरस्कार – पद्मश्री, तेनजिंग नोर्गे नेशनल एडवेंचर अवार्ड, अमेजन इण्डिया।
किताब – बोर्न अगेन ऑन द माउंटेन (2014)
Arunima Sinha Short Biography In Hindi
आज हम आपको अरुनिमा सिन्हा जी के बारे में बताने जा रहे है जो कि दिव्यांग (विकलांग) है। दिव्यांग होने के बावजूद वे पर्वतारोही है। उन्होंने दिव्यांगता को कभी भी अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया।
अरुनिमा सिन्हा बचपन से दिव्यांग नहीं है बल्कि एक ट्रेन एक्सीडेंट में लगी चोट के कारण वे दिव्यांग हुई। अरुनिमा सिन्हा फुटबाल और बॉलीबाल बहुत प्रिय है।
उन्होंने नेहरू इंस्टीट्यूट ऑफ़ माउंटेनियरिंग से पर्वतारोहण का कार्य किया हुआ है। अरुनिमा का जन्म 20 जुलाई 1988 को उत्तर प्रदेश के अंबेडकर नगर में हुआ था।
अरुनिमा के माता-पिता के बारे में अभी अधिक जानकारी नहीं है। अधिकतर लोगो का मानना है कि अरुनिमा को किसी और ने पाला है।
अरुनिमा सिन्हा का ट्रेन एक्सीडेंट
अरुनिमा सिन्हा सी आई एस एफ (C.I.S.F.) की परीक्षा के लिए 21 अप्रैल 2011 को पद्मावत एक्सप्रेस से जा रही थी। यात्रा के समय कुछ बदमाशों ने उनकी सोने की चैन और बैग को छीनने की कोशिस की और इसी छीना झपटी में अरुनिमा ट्रेन से गिर गई और दूसरे ट्रैक पर चली गई और जब तक वे खुद को बचा पाती, ट्रेन उनके पैर को कुचल चुकी थी।
हॉस्पिटल में एडमिट करने के बाद उनका एक पैर काटना पड़ा क्योंकि वह पैर बहुत बुरी तरह जख्मी हो गया था। इस घटना से उनके परिवार को बहुत दुख पहुंचा।
परिवार के लोग उन्हें देखते और भाग्य को कोसते हुए रोते। अरुनिमा को एक बेचारी और दुखियारी औरत के रूप में देखा जाता था और यही बात अरुनिमा को बहुत बुरी लगी और उन्होंने फैसला कर लिया कि वे ऐसा कार्य करेगी दूसरे के लिए भी मिसाल बने, और अरुनिमा सिन्हा का दुनिया की सबसे ऊँची चोटी पर चढ़ना सफल रहा।
अरुनिमा सिन्हा का मानना था कि उनका कटा हुआ पैर उनकी कमजोरी नहीं बन सकता। यह सोचने के बाद उन्होंने कटे हुए पैर में फाइबर और लोहे का मिक्स्ड पैर लगवाया और फिर माउन्ट एवरेस्ट को फतह करने के लिए निकल पड़ी।
अरुनिमा को उनकी बहन और उनकी माँ ने काफी प्रोत्साहित किया। उनके प्रोत्साहन के बाद मानो अरुनिमा को नया जीवन मिल गया था, क्योंकि ट्रेन दुर्घटना के साथ ही उनका तलाक भी हो गया था और इससे वे टूट गयी थी।
हालांकि उन्होंने इन सब बातो को पीछे छोड़कर अपने लक्ष्य की तरफ ध्यान केंद्रित किया और इसके लिए हर तरह के प्रयास शुरू किये और इसी कड़ी में दिल्ली के एक संगठन ने उन्हें नकली पैर प्रदान किये और इसके बाद तो अरुनिमा का हौसला और अधिक बढ़ गया और वे जमशेदपुर पहुंची और वहां बछेन्द्री पाल से मिली और उन्होंने अरुनिमा को अपने शिष्य के रूप में स्वीकार कर लिया।
उसके बाद अरुनिमा ने पीछे मुड़कर नहीं देखा और अंततः 21 मई 2013 को 10 बजकर 55 मिनट पर उन्होंने माउन्ट एवरेस्ट पर तिरंगा फहराया तो उनकी आँखों में आंसू आ गए। ये आंसू ख़ुशी के थे, सफलता के थे।
अरुनिमा सिन्हा को मिले पुरस्कार
2015 में अरुनिमा सिन्हा को पद्मश्री से नवाजा गया।
2016 को अरुनिमा सिन्हा को तेनजिंग नोर्गे एडवेंचर अवार्ड दिया गया।
2018 में अरुनिमा को प्रथम महिला पुरस्कार दिया गया।
इसके अलावा उत्तर प्रदेश सरकार ने उनके जज्बे को सलाम करते हुए उन्हें 25 लाख का चेक और केंद्र सरकार ने उन्हें 20 लाख रुपये दिए। इसके अलावा समाजवादी पार्टी ने उन्हें 5 लाख रुपये दिए।
अरुनिमा ने किन-किन चोटियों पर चढ़ाई पूरी की?
1- माउन्ट एवरेस्ट।
2- अर्जेंटीना के अकोकामुआ पर्वत पर।
3- अफ्रीका के किलिमंजरी पर्वत पर।
अरुणिमा लखनऊ से दिल्ली किस ट्रेन से जा रही थी?
अरुनिमा लखनऊ से दिल्ली पद्मावत एक्सप्रेस से जा रही थी।
अरुनिमा दिल्ली कब जा रही थी?
अरुनिमा दिल्ली 21 अप्रैल 2011 को रही थी।
अरुनिमा का जन्म कहा हुआ था?
अरुनिमा का जन्म अम्बेडकर नगर, उत्तर प्रदेश में हुआ था।
अरुनिमा ने एवरेस्ट पर कब जीत प्राप्त की थी?
अरुनिमा ने 21 मई 2013 को 10 बजकर 55 मिनट पर एवरेस्ट पर जीत प्राप्त की थी।
विकलांगता के संबंध में अरुनिमा के क्या विचार है?
अरुनिमा का इस संबंध में कहना है कि हर किसी के जिंदगी में परेशानिया अवश्य आती है, लेकिन मनुष्य अगर अपनी कमजोरी को अपनी ताकत बना ले तो उसके सामने हर परेशानी बौनी हो जाती है।
अरुनिमा यदि हार मानकर और लाचार होकर घर पर बैठ जाती तो क्या होता?
यदि अरुनिमा हार मानकर और लाचार होकर घर पर बैठ जाती तो वह अपने परिवार का बोझ बन जाती। वे अपने लक्ष्य को हासिल नहीं कर पाती।
वे दूसरों के लिए मिसाल नहीं बन पाती। हमेशा कुंठित रहती क्योंकि वे अपने उस लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर पाती जिसका उन्होंने सपना देखा था।
अरुणिमा सिन्हा के भाई का नाम क्या था?
अरुणिमा के भाई का नाम ओमप्रकाश सिन्हा था।
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