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10 + Amrita Pritam Poems In Hindi Pdf / अमृता प्रीतम कविता Pdf

नमस्कार मित्रों, इस पोस्ट में हम आपको 10 + Amrita Pritam Poem In Hindi Pdf देने जा रहे हैं, आप नीचे की लिंक से अमृता प्रीतम कविता Pdf Free Download कर सकते हैं।

 

 

 

Amrita Pritam Poem In Hindi Pdf / अमृता प्रीतम कविता Pdf 

 

 

 

1- रशीदी टिकट की आत्मकथा 

 

2- मुहब्बतनामा 

 

 

10 + Amrita Pritam Poems In Hindi Pdf
10 + Amrita Pritam Poems In Hindi Pdf

 

 

3- कोरे कागज़ 

 

4-उधड़ी हुई कहानियां 

 

5- 7 सवाल अमृता प्रीतम की कहानी 

 

6- एक खाली जगह 

 

7- यह सच है 

 

 

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अमृता प्रीतम की कविताये, उपन्यास बहुत ही बढ़िया है। अमृता प्रीतम पंजाबी और हिंदी दोनों ही भाषाओ में कविता लिखी है। इनका जन्म 31 अक्टूबर 1919 में गंजनवाला पंजाब, पाकिस्तान में हुआ था।

 

 

 

 

इनकी मृत्यु 31 अक्टूबर 2005 को दिल्ली के हौज खास में हुआ। जब अमृता प्रीतम की उम्र 11 वर्ष की थी तभी इनकी माता का निधन हो गया। 1947 में इन्होने विभाजन के दर्द को सहा और बहुत करीब से महसूस किया।

 

 

 

 

उसके बाद इनका परिवार दिल्ली में बस गया। अमृता प्रीतम की शिक्षा लाहौर पाकिस्तान से हुई थी इनकी 50 से अधिक पुस्तके प्रकाशित हो चुकी है।

 

 

 

 

Amrita Pritam Poem in Hindi

 

 

 

 

भारत की गलियों में भटकती हवा
चूल्हे की बुझती आग को कुरेदती
उधार लिए अन्न का
एक ग्रास तोड़ती
और घुटनों पे हाथ रखके
फिर उठती है..

 

चीन के पीले
और ज़र्द होंटों के छाले
आज बिलखकर
एक आवाज़ देते हैं
वह जाती और
हर गले में एक सूखती
और चीख मारकर
वह वीयतनाम में गिरती है..

 

श्मशान-घरों में से
एक गन्ध-सी आती
और सागर पार बैठे –
श्मशान-घरों के वारिस
बारूद की इस गन्ध को
शराब की गन्ध में भिगोते हैं।

 

बिलकुल उस तरह, जिस तरह –
कि श्मशान-घरों के दूसरे वारिस
भूख की एक गन्ध को
तक़दीर की गन्ध में भिगोते हैं
और लोगों के दुःखों की गन्ध को –
तक़रीर की गन्ध में भिगोते हैं।

 

और इज़राइल की नयी-सी माटी
या पुरानी रेत अरब की
जो खून में है भीगती
और जिसकी गन्ध –
ख़ामख़ाह शहादत के जाम में है डूबती..

छाती की गलियों में भटकती हवा
यह सभी गन्धें सूंघती और सोचती –
कि धरती के आंगन से
सूतक की महक कब आएगी?
कोई इड़ा – किसी माथे की नाड़ी
– कब गर्भवती होगी?
गुलाबी माँस का सपना –
आज सदियों के ज्ञान से
वीर्य की बूंद मांगता..

 

 

2. पहचान 

 

 

तुम मिले
तो कई जन्म
मेरी नब्ज़ में धड़के
तो मेरी साँसों ने तुम्हारी साँसों का घूँट पिया
तब मस्तक में कई काल पलट गए-

 

 

एक गुफा हुआ करती थी
जहाँ मैं थी और एक योगी
योगी ने जब बाजुओं में लेकर
मेरी साँसों को छुआ
तब अल्लाह क़सम!
यही महक थी जो उसके होठों से आई थी-
यह कैसी माया कैसी लीला
कि शायद तुम ही कभी वह योगी थे
या वही योगी है-
जो तुम्हारी सूरत में मेरे पास आया है
और वही मैं हूँ.. और वही महक है..

 

 

 

3.  रोजी 

 

नीले आसमान के कोने में
रात-मिल का साइरन बोलता है
चाँद की चिमनी में से
सफ़ेद गाढ़ा धुआँ उठता है

सपने – जैसे कई भट्टियाँ हैं
हर भट्टी में आग झोंकता हुआ
मेरा इश्क़ मज़दूरी करता है

तेरा मिलना ऐसे होता है
जैसे कोई हथेली पर
एक वक़्त की रोजी रख दे।

जो ख़ाली हँडिया भरता है
राँध-पकाकर अन्न परसकर
वही हाँडी उलटा रखता है

बची आँच पर हाथ सेकता है
घड़ी पहर को सुस्ता लेता है
और खुदा का शुक्र मनाता है।

रात-मिल का साइरन बोलता है
चाँद की चिमनी में से
धुआँ इस उम्मीद पर निकलता है

जो कमाना है वही खाना है
न कोई टुकड़ा कल का बचा है
न कोई टुकड़ा कल के लिए है..

 

 

4. मुकाम 

क़लम ने आज गीतों का क़ाफ़िया तोड़ दिया
मेरा इश्क़ यह किस मुकाम पर आ गया है

देख नज़र वाले, तेरे सामने बैठी हूँ
मेरे हाथ से हिज्र का काँटा निकाल दे

जिसने अँधेरे के अलावा कभी कुछ नहीं बुना
वह मुहब्बत आज किरणें बुनकर दे गयी

उठो, अपने घड़े से पानी का एक कटोरा दो
राह के हादसे मैं इस पानी से धो लूंगी..

 

5.  साल मुबारक!

जैसे सोच की कंघी में से
एक दंदा टूट गया
जैसे समझ के कुर्ते का
एक चीथड़ा उड़ गया
जैसे आस्था की आँखों में
एक तिनका चुभ गया
नींद ने जैसे अपने हाथों में
सपने का जलता कोयला पकड़ लिया
नया साल कुझ ऐसे आया..

 

जैसे दिल के फ़िक़रे से
एक अक्षर बुझ गया
जैसे विश्वास के काग़ज़ पर
सियाही गिर गयी
जैसे समय के होंटो से
एक गहरी साँस निकल गयी
और आदमज़ात की आँखों में
जैसे एक आँसू भर आया
नया साल कुछ ऐसे आया..

 

जैसे इश्क़ की ज़बान पर
एक छाला उठ आया
सभ्यता की बाँहों में से
एक चूड़ी टूट गयी
इतिहास की अंगूठी में से
एक नीलम गिर गया
और जैसे धरती ने आसमान का
एक बड़ा उदास-सा ख़त पढ़ा
नया साल कुछ ऐसे आया..

 

 

 

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