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Amrit Vachan Pdf In Hindi
अमृत वचन के बारे में और किताब के कुछ अंश
मान्य शुभर्चितक गण हमें विवादस्पद विषयों से बचने की सलाह देते हैं। प्रथम तो यह कि विवाद उत्पन्न करते कौन लोग हैं ? हमने तो आज तक बिना शास्त्रीय सन्दर्भ के, निजी कल्पना से कोई बात कही ही नहीं।
राममंदिर का विषय भी विवादित था, तो उसे क्यों नहीं छोड़ दिया गया ? कश्मीर और अरुणाचल भी विवादित है, उसे भी छोड़ दें ? किसी को तो बलि पड़ना ही होगा। बड़े बड़े पीठाधीश्वर तो इसी चक्कर में चुप रह जाते हैं। हम भी चुप रह गए तो साधारण हिन्दू समाज का होगा क्या ? यदि हमें शास्त्रीय बातें बोलनी ही नहीं हैं तो व्यर्थ ही शाख्राध्ययन किया न ! कोट पैंट पहनकर नौकरी की ठोकरें खाते रहते और या तो धर्म को गाली देते या फिर फ़र्ज़ी धर्मगुरुओं के चरण धोते रहते। किन्तु छोटी ही सही, जब तक हमलोगों की दीवार है, सनातन निराश नहीं होगा …
सीधे मार्ग पर कभी कभी मार्गदर्शन न मिले तो भी लोग अपना मार्ग खोज लेते हैं, किन्तु जहां भ्रमित होने की संभावना है, वहां हमलोगों की उपयोगिता बढ़ जाती है। मैं केवल नश्वर निजी सुख के लिए धर्म को ऐसे हारता हुआ नहीं देख सकता हूँ। लोग पूछते हैं मुझसे – आपकी समस्या क्या है ? मैं उन्हें बताना चाहता हूँ कि ‘मैंने उनपर विश्वास किया जिन्होंने मुझपर कभी विश्वास नहीं किया। मैंने उनकी सहायता की, जिन्होंने कभी मेरी सहायता नहीं की। मैंने उनसे प्रेम किया, जिन्होंने कभी बदले में मुझसे प्रेम नहीं किया ।’ किन्तु मैं कुछ नहीं कहता । एक नकली मुस्कुराहट के साथ मैं उत्तर देता हूँ – ‘सब कुछ ठीक है।’ और इस प्रकार से मैं अपनी भावनाओं को धुंधली होने देता हूँ । कभी कभी मैं ऊपर आकाश की ओर देखता हूँ और पूछता हूँ – मैं ही क्यों ? वे उत्तर देते हैं – ‘क्योंकि तुमने विश्वास किया ।’
अपने वर्णधर्म के अनुसार शाख्रोक्त निश्चित आजीविका का अनुसरण करने वाला व्यक्ति आपाततः दरिद्र हो सकता है किन्तु बेरोजगार नहीं, क्योंकि प्रकृति और धर्म व्यक्ति के जन्म से पूर्व ही उसकी आजीविका निश्चित करते हैं। नैसर्गिक वर्णसम्मत आजीविका का त्याग करके उससे भिन्न एवं पराश्रिता आजीविका की लालसा से ही बेरोजगारी का उदय हुआ है। बिना शास्त्रों का समुचित ज्ञान प्राप्त किये जो अनुभव हुआ, जो ज्ञान हुआ, वह प्रकाशित है या तमसावृत, यह कैसे ज्ञात होगा ? उस स्थिति में ही सबसे अधिक अहंकार होगा क्योंकि आपको तो यह भी बोध नहीं होगा कि हमें अहंकार हो रहा है, अथवा अहंकार का परिणाम क्या हो सकता है। उचित तत्व का उचित ज्ञान शाख्त्र के द्वारा वर्णित विधि से ही सम्भव है क्योंकि जब उचित विधि के अभाव में एक सामान्य सी घड़ी तक कार्य नहीं करती तो सम्पूर्ण ब्रह्मांड के संचालन और संचालकों का ज्ञान कैसे सम्भव है ? अतएव सद्शाखत्र का अध्ययन अति आवश्यक है।
पुस्तक का नाम | Amrit Vachan Pdf In Hindi |
पुस्तक के लेखक | जयदयाल गोयनका |
फॉर्मेट | |
साइज | 31.1 Mb |
भाषा | हिंदी |
पृष्ठ | 158 |
श्रेणी | प्रेरक |
अमृत वचन Pdf Download


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