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किरातार्जुनीयम् प्रथम सर्ग PDF
किरातार्जुनीयम् प्रथम सर्ग PDF Hindi Download

About This Book
तत्कालीन रसिक समुदाय ने महाकवि भारवि को अत्यंत सम्मान दिया था। उन्हें ‘आतपत्रभारवि’ की उपाधि भी मिली थी। जिस पद्य के कारण कवि को यह प्रतिष्ठा मिली थी वह किरात के पंचम सर्ग में इस प्रकार है। पुष्पित कमलिनियों के वनप्रान्त से उत्पन्न कमल पुष्प चूर्ण आकाश के चारो ओर वातचक्र से आंदोलित होकर इस प्रकार सुशोभित हो रहा है।
मानो कनकक्षत्र तन उठा है। कितनी अनूठी कल्पना है कवि की इससे कवि की कल्पनाशक्ति के साथ-साथ उसकी सौंदर्यात्मक अनुभूति का भी हमे ज्ञान होता है। भारवि परमशैव थे। यह तथ्य उनके कथानकचयन से ही सिद्ध हो जाता है। ग्रंथ के 18वे सर्ग में कवि ने अर्जुन के मुख से भगवान पशुपति की जो भावभीनी स्तुति कराई है वह उनकी वैयक्तिक शिवभक्ति का ही स्वर है।
कवि की एक मात्र उपलब्धि उसका महाकाव्य ‘किरातार्जुनीयम’ है जिसकी गणना ‘वृहत्रयी’ काव्यों में की जाती है। इसमें कुल 18 सर्ग तथा 1040 श्लोक है। तीसरी समस्या यह है कि महाकाव्य है क्या? और एक महाकाव्य के रूप में किरात के वैशिष्ट्य है?
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